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अनुभूमिका ( २ ) ॥ जब आर्यावर्त्तस्थ मनुष्य में सत्यासत्य का यथावत् निर्णय करनेवाली वेदविद्या छूटकर अविद्या फैल के मतमतान्तर खहे हुए यही जैन आदि के विद्याविरुद्धमतप्रचार का निमित्त हुआ क्योंकि बाल्मीकीय और महाभारतादि में जैनियों को नाममात्र भी नहीं लिखा और जैनियों के ग्रन्थों में बाल्मीकीय और भारत में कथित रामकृष्णादि की गाथा बडे विस्तारपूर्वक लिखी है इससे यह सिद्ध होता है कि यह मत इनके पीछे चला, क्योकि जैसा अपने मत को बहुत प्राचीन जैनी लोग लिखते है वैसा होता तो बाल्मीकीय अादि ग्रन्थों में उनकी कथा अवश्य होती इसलिये जैनमत इन ग्रन्थों के पीछे चला है। कोई कहे, कि जैनियों के ग्रन्थों में से कथाओं को लेकर बाल्मीकीय अदि ग्रन्थ बने होंगे तो उनसे पूछना चाहिये कि बाल्मीकीय आदि में तुम्हारे ग्रन्थों का नाम लेख भी क्यों नहीं? और तुम्हारे ग्रन्थे में क्यों है? क्या पिता के जन्म का दर्शन पुत्र कर सकता है ? कभी नही । इससे यही सिद्ध होता है कि जैन बौद्ध मत शैव शाक्तादि मतों के पीछे चला है अब इस १ १२) बारहवें समुल्लास में जो २ जैनियों के मत विपय में लिखा गया है सो २ उनके ग्रन्थों के पते पूर्वक लिखा है. इसमें जैन लोगों को बुरा न मानना चाहिये क्योंकि जो २ हमने इनके मते विषय में लिखा है वह केवल सत्यासत्य के निर्णयार्थ है। न कि विरोध व हानि करने के अर्थ । इस लेख को जब जैनी वौद्ध वा अन्य लोग देखेंगे तब मबको सत्यासत्य के निर्णय में विचार और लेख करने का समय मिलेगा और बोध भी होगा जबतक वादी प्रतिवादी होकर प्रीति से वाद वा लेख न किया जाये तबतक सत्यासत्य का निर्णय नहीं हो सकता। जब विद्वान् लोगों में सत्यासत्य का निश्चय नहीं होता तभी अविद्वानों को महा अन्धकार में पड़कर चहुत दुःख उठाना पड़ता है इसलिये सत्य के जय और असत्य के क्षय के अर्थ मित्रता से वाद वा लेख करना हमारी मनुष्यजाति का मुख्य काम है। यदि ऐ न । तो मनुष्यों की उन्नति कभी न हो। और यह बौद्ध जैन मत का विषय विना इन