पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४१०

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| सत्यार्थप्रकाश ।। - - -- - भी स्वाभाविक ज्ञान है तो भी वे अपनी उन्नति नहीं कर सकते और जो नैमित्तिक ज्ञान है वही उन्नति का कारण है। देखो ! तुम हम बाल्यावस्था में कर्तव्याकर्तव्य और धर्माधर्म कुछ भी ठीक २ नही जानते थे जव हम विद्वानों से पढे तभी कर्त्तव्याकर्त्तव्य और धर्माधर्म को समझने लगे इसलिये स्वाभाविक ज्ञान को सर्वोपरि मानना ठीक नहीं । ९-जो आप लोगों ने पूर्व और पुनर्जन्म नहीं माना है वह ईसाई मुसलमानों से लिया होगा इसका भी उत्तर पुनर्जन्म की व्याख्या से समझ लेना परन्तु इतना समझो कि जीव शाश्वत अर्थात् नित्य है और उसके कर्म भी प्रवाहुरूप से नित्य हैं कर्म और कर्मवान् का नित्य सम्बन्ध होता है क्या वह जीव कह निकम्मा बैठा रहा था ? वा रहेगा ? और परमेश्वर भी निकम्मा तुम्हारे कहने से होता है पूर्वापर जन्म न मानने से कृतहानि और अकृताभ्यागस नैघृण्य और वैषम्य दोष भी ईश्वर में आते हैं क्योंकि जन्म न हो तो पाप पुण्य के फल भोग की हानि होजाय क्योंकि जिस प्रकार दूसरे को सुख, दु.ख, हानि, लाभ पहुंचाया होता है। वैसा उसका फल विना शरीर धारण किये नहीं होता दूसरा पुनर्जन्म के पाप पुण्यों के विना सुख, दु.ख की प्राप्ति इस जन्म में क्योंकर होवे जो पूर्वजन्म के पाप पुण्यानुसार न होवे तो परमेश्वर अन्यायकारी और विना भोग किये नःश के समान कर्म का फल हो । जावे इसलिये यह भी बात आप लोगो की अच्छी नहीं। १०और एक यह कि ईश्वर के विना दिव्य गुणवाले पदार्थों और विद्वानों को भी देव न मानना ठीक नहीं क्योंकि परमेश्वर महादेव और जो देव न होता तो सव देवों का स्वामी होने से महादेव क्यों कहाता', ११-एक अग्निहोत्रादि परोपकारक कर्मों को कर्तव्य न समझना अच्छा नहीं । १२ऋषि महर्षियों के किये उपकारों को न मान कर ईसा आदि के पीछे झुक पड़ना अच्छा नहीं । १३-और विना कारण विद्या वेदों के अन्य कार्य विद्या की प्रवृत्ति मानना सर्वथा असम्भव है। १४-और जो विद्या के चिन्ह यज्ञोपवीत और शिखा को छोड़ मुसलमान ईसाइयों के सदृश बन बैठना यह भी व्यर्थ है जब पतलून आदि वन्न पहिरते हो और तमगों की इच्छा करते हो तो क्या यज्ञोपवीत आदि का कुछ बड़ा भार होगया था ? । १५-और ब्रह्मा से लेकर पीछे २ आर्यावर्त में बहुतसे विद्वान् होगये हैं उनकी प्रशंसा न करके यूरोपियन ही की स्तुति में उतर पडना पक्षपात और खुशामद के विना क्या कहाजाय ? । १६-ऑर वीजांकुर के समान | जड चेतन के योग में जीवोत्पत्ति मानना उत्पत्ति के पूर्व जीवतत्त्व का न मानना और