पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४००

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

सत्यार्थप्रकाश: ।। , आदि देशों में फिरता था उसने देखा कि यह देश मूर्ख और भोला भाला है चाहे । जैसे इनको अपने मतमें झुकानें वैसे ही ये लोग झुक सकते हैं। वहां उसने दो चार शिष्य बनाय उनने आपस में सम्मति कर प्रसिद्ध किया कि सहजानन्द नारायण का अवतार और बड़ा सिद्ध है और भक्तों को चतुर्भुज मूर्ति धारण करे साक्षात् दशन भी देता है एक वार काठियावाड़ में किसी काठी अर्थात् जिसका नाम दादाखाचर गढड़े का भूमिया ( जिमीदार ) था उसको शिष्यों ने कहा कि तुम चतुर्भुज नारायण का दर्शन करना चाहो तो हम सहजानन्दजी से प्रार्थना करें? उस ने कहा बहुत अच्छी बात है वह भोला आदमी था एक कोठरी में सहजानन्द ने शिर पर मुकुट धारण कर और शङ्ख चक्र अपने हाथ में ऊपर को धारण किया और एक दूसरा आदमी उसके पीछे खड़ा रहकर गदा पद्म अपने हाथ में लेकर सहजानन्द की बगल में से अागे को हाथ निकाल चतुर्भुज के तुल्य बन ठन गये दादाखाचर से उसके चेलों ने कहा कि एक वार आंख उठा देख के फिर आंख मीच लेना और झट इधर को चल आना जो बहुत देखोगे तो नारायण कोप करेंगे अर्थात् चेलों के मन में ना यह था कि हमारे कपट की परीक्षा न कर लेवे ! उसको लगये वह सहजानन्द कलावतू और चिलकते हुए रेशम के कपड़े धारण कर रहा था अथेरो कोठरी में | खडा था उसके चेलों ने एक साथ लालटेन से कोठरी के ओर उजाला किया दादाखाचर ने देखा तो चतुर्भुज मूर्सि दीखी फिर झट दीपक को आड़ में कर दिया वे सये | नीचे गिर, नमस्कार कर दूसरी ओर चले आये और उसी समय बीच में बातें की कि तुन्हारा धन्य भाग्य है अब तुम महाराज के चेले होजाओ उसने कहा वहुत अच्छी बात जब ले फिर के दूसरे स्थान में गये तव लॉ दूसरे वस्त्र धारण करके सहजानन्द गद्दी पर बैठा मिला तव चेल ने कहा कि देखो अवदूसरा स्वरूप धारण करके यह विराजमान हैं। वह दादाखाचर इनके जाल में फंस गया वहीं से उनके मत की जई नमी पकि वह एक बड़ा भूमिया था वही अपनी जड़ जमाली पुन. इधर उधर घूमता रहा मध को उपदेश करता था, बहुतों को साधु भी बनाता था कभी किसी साधु फो झण्ट की नाड़ी को मल कर मूर्छित भी कर देता था और मूवसे कहता था कि हम । ने इन माथि नाही हे मी २ तैना में काठियावाड के भोलेभाले लोग उसके ५५६ ६ ६म ये व मर गया नत्र उसके चेलों ने बहुतसा पायंउ फैलाया इसमें २१ : { उरत छ । जैसे कई बार इरना पड़ गया था न्यायादेश ।