पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३८४

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। ३७४ सत्यार्थप्रकाश: ॥ ' की लंगोटी लगा धूनी तापते, जटा बढ़ाते सिद्ध का वेष कर लेते हैं बगुले के समान ध्यानावस्थित होते हैं गांजा, भांग, चरस के दम लगाते लाल नेत्र कर रखते सब से चुकटी २ अन्न, पिसान, कौड़ी, पैसे मागते गृहस्थों के लड़कों को बहका कर चेले बना लेते हैं बहुत करके मजूर लोग उनमें होते हैं कोई विद्या को पढ़ता हो तो उसको पढने नहीं देते किन्तु कहते हैं कि - पठितव्यं तदपि मर्त्तव्यं दन्तकटाकटेति किं कर्तव्यम् । सन्तों को विद्या पड़ने से क्या काम क्योंकि विद्या पढ़नेवाले भी मरजाते हैं। फिर दन्त कटाकट क्यों करना ? साधुओं को चार धाम फिर आना, सन्तों की सेवा । करनी, राम जी का भजन करना है। जो किसी ने मूर्ख अविद्या की मूर्ति न देखी हो तो खाखीजी का दर्शन कर आवे उनके पास जो कोई जाता है उनको बच्चा बच्ची कहते हैं चाहे वे खाखीजी के बाप मा के समान क्यों न हों जैसे खाखीजी है वैसे ही रूखेड, सूखड, गोड़िये और जमातवाले सुतरेसाई और अकाली, कनफटे, जोगी, औघड़ आदि सब एकसे है । एक खाखी का चेला श्रीगणेशाय नम, घाखता २ कुवे पर जल भरने को गया वहां पाडत बैठा था वह उसको ‘स्रीगनेसाजन में घोखते देखकर बोला अरे साधू ! अशुद्ध घाखता है *श्रीगणेशाय नम. ऐसा घोख उसने झट लोटा भर गुरूजी के पास जा कहा कि एक बम्मन मेरे घोखने को अशुद्ध कहता है ऐसा सुन । कर झट खाखीजी उठा कूप पर गया और पण्डित से कहा तू मेरे चेले को बहकाता है ? तू गुरू की लही। क्या पढ़ा है ? देख तू एक प्रकार का पाठ जानता है हम तीन : प्रकार का जानते हैं ‘‘स्रीगने साजन्नमें” “स्नीगनेसायन्नमें" "श्रीगने सायनमें' ।। (पण्डित ) सुनो साधू जी ! विद्या की बात बहुत कठिन है बिना पढ़े नही आती । ( खाख) चल वे, सर्व विद्वान् को हमने रगड़ मारे जो भाग में वोट एक दुम सर्व । चा दिये सन्तों का घर वडा ३ ते वाचूडा क्या जाने ।( पण्डित ) देखो जो तुम ने विद्या पढ़ी होती तो ऐसे अपशब्द क्यों बोलते ? सब प्रकार का तुमको ज्ञान होता । ( खात) अवे तु हमारा गुरू बनता है ? तेरा उपदेश हम नहीं सुनते (प. ण्ठिते । सुनो कहा से बुद्धि ही नहीं है, उपदेश सुनने समझने के लिये विद्या चाहिये । ( ख) ज सव वेद शास्त्र पढे सन्त का न माने तर जाने कि वह कुछ । भी नहीं पड़ा । (पण्ति ) हा इम सन्त की सेवा करते हैं परन्तु तुम्हारे से हुई।। ॐ शं नहीं करते क्योंकि नन्त मञ्जन, विद्वान, धार्मिक, परोपकारी पुरुपा ।