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एकादशलमुसिः || यसेन वायुना सत्यराजन् । इत्यादि वेदवचनों से निश्चय है कि 'यम' नाम वायु का है शरीर छोड़ वायु । के साथ अन्तरिक्ष में जीव रहते है और जो सत्यकर्ता पक्षपातरहित परमात्मा “धकुर्मराज हैं वही सबका न्यायकत्ता है। ( ५% ) तुम्हारे कहने से गोदानादि दान किसी को न देना और न कुछ दान पुण्य करना ऐसा सिद्ध होता है । ( उत्तर ) यह तुम्हारा कइना सर्वथा व्यर्थ है क्योकि सुपाचे को, परोपकारियों को परोपकारार्थ सोना, चादी, हीरा, माती, माणिक, अन्न, जल, स्थान, वस्त्रादि दान अवश्य करना उचित है। किन्तु कुपात्रा को कभी न देना चाहिये ( प्रश्न ) कुपात्र और सुपात्र का लक्षण क्या हैं ? ( उत्तर ) जो छल, कपटी, स्वार्थी, विषयी, काम क्रोध लोभ मोह से युक्त, पराई हानि करनेवाले, लपटी, सियावादी, अविद्वान्, कुसङ्गी, आलसी, जो कोई दाता हो उसके पास वारवार गगन', धरना देना, ना किये पश्चात् भी हठ से मांगते ही । जाना, सन्तोष न होना, जो न दे उसकी निन्दा करना, शाप और गाली प्रदानादि देना, अनेक वार जो सेवा कर और एक बार न करे तो उसका शत्रु बनजाना, ऊपर से साधु का वेश बना लोगों को वका कर ठगना और अपने पास पदार्थ हो तो भी मेरे पास कुछ भी नहीं है कहना, सवको फुसला फुसल कर स्वार्थ सिद्ध करना रात दिन भीख मांगने ही में प्रवृत्त रहना, निमंत्रण दिये पर यथेष्ट भगादि मादक द्रव्य खा पीकर बहुतसा पराया पदार्थ खाना, पुनः उन्मत्त होकर प्रमादी होना, सत्य मार्ग का विरोध और झूठ मार्ग में अपने प्रयोजनार्थ चलना वैसेही अपने चेलों को केवल अपनी ही सेवा करने का उपदेश करना, अन्य योग्य पुरुषों की सेवा करने का नहीं, सद्विद्यादि प्रवृत्ति के विरोधी, जगत् के व्यवहार अर्थात् स्त्री, पुरुष, माता, पिता, सन्तान, राजा, प्रजा, इष्टमित्रो में अप्रीति कराना कि ये सब असत्य हैं और जगत् भी मिथ्या है, इत्यादि दुष्ट उपदेश करना आदि कुपात्रों के लक्षण हैं। और जो ब्रह्मचारी, जितेन्द्रिय, वेदादिविद्या के पढने पढ़ानेहोरे,सुशील, सत्यवादी, परोपकाश्रिय पुरुषार्थी, उदार, विद्या धर्म की निरतर उन्नति करनेहार, धमात्मा, शान्त, निन्दा स्तुति में हर्ष शोक रहित, निर्भय, उत्साही, योगी, ज्ञानी, सृष्टिक्रम, वेदाज्ञा, ईश्वर के गुण कर्म स्वभावानुकूल वर्तमान करनेहारे, न्याय की रीतियुक्त पक्षपातरहित सत्योपदेश और सत्यशास्त्रों के पढ़ने पढानेहारे के परीक्षक, किसी की लल्लो पत्तो न करें, प्रश्नों के यथार्थ समाधानकर्ता, अपने आत्मा के तुल्य अन्य का भी सुख, दुःख, हानि, लाभ समझने