पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३६७

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एक:६३साक्ष, ।। स्त्रियां और छान्दोग्य में जनश्रुति शूद्र ने भी वे क्यमुनि के पास पढ़ी थी और यजुर्वेद के २६वें अध्याय के दूसरे मंत्र में स्पष्ट लिखा है कि वेदों के पढ़ने और सुनने का अधिकार मनुष्यमात्र को है पुनः जो ऐसे २ मिथ्या ग्रंथ वना लोगों को सत्यग्रंथों से विमुख जाल में फंसा अपने प्रयोजन को साधते हैं वे महापापी क्यों नहीं ? ।।। देखो ग्रहो का चक्र कैसा चलाया है कि जिसने विद्याहीन मनुष्यों को ग्रस लिया है। 'कृष्णेन रजसा०। १ । सूर्य का मन्त्र। *“इमं देवा असपत्नसुवध्वम्० । २ । चन्द्र० । “अग्निर्मूद्ध दिवः ककुत्पति.०' । ३ । मंगल । “उद्बुध्यस्खाग्ने०। ४ । बुध । “बृहस्पते अतियदय ०' । ५। बृहस्पति । शुक्रमन्धसः । ६ । शुक्र । शन्नो देवीरभिष्टय ०' | ७ | शनि । “कया नश्चित्र भुव ०? | ८ । राहु और केतु कृएवन्न केतवे०' । ९ । इसको केतु की कण्डिका कहते हैं ( कृष्णे ० ) यह सूर्य का है और भूमि का आकर्षण। १। दूसरा राजगुण विधायक। २ । तीसरा अग्नि । ३ । और चौथा यजमान । ४। पांचवा विद्वान् । ५। छठ वीर्य अन्न। ६ । सातवां जल प्राण और परमेश्वर । ७। आठवा मित्र।८ । नववा ज्ञानग्रहण का विधायक मत्र है।६। ग्रहों के वाचक नहीं । अर्थ न जानने से भ्रमजाल में पड़े हैं। ( प्रश्न ) ग्रहों का फल होता है वा नहीं ? ( उत्तर ) जैसा पोपलीला का है वैसा नहीं किन्तु जैसा सूर्य चन्द्रमा की किरणद्वारा उष्णता शीतलता अथवा ऋतुवकालचक्र का सम्बन्धमात्र से अपनी प्रकृति के अनुकूल प्रतिकूल सुख दु:ख के निमित्त होते हैं परन्तु जो पोपलीलावाले कहते हैं सुनो **महाराज सेठजी ' यजमानो तुम्हारे आज आठवां चन्द्र सय्यद क्रूर घर में आये हैं अढाई वर्ष का शनैश्चर पग में आया है तुमको बडा विघ्न होगा घर द्वार छड़ाकर परदेश में घुमावेगा परन्तु जो तुम ग्रहों का दान, जप, पाठ, पूजा करायोगे तो दुःख से बचोगे इनसे कहना चाहिये ।के सुनो पोपजी ! तुम्हारा और ग्रहों का क्या सम्बन्ध है ? ग्रह क्या वस्तु है ? ( पोपजी ):-- दैवाधीनं जगत्सर्वं मन्त्राधीनाश्च देवताः । ते मन्त्री ब्राह्मणाधीनस्तस्माद् ब्राह्मणदैवतम् ॥ देखो कैसा प्रमाण है देवताओं के अधीन सर्व जगत्, मन्त्रों के अधीन सब देवता और वे मंत्र ब्राह्मणों के अधीन हैं इसीलिये ब्राह्मण देवता कहाते हैं। क्योंकि चाहै जिस देवता को मंत्र के बल से खुला प्रसन्न कर काम सिद्ध कराने का हमारा ही