पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३६६

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सत्यार्थप्रकाशः ।। • vvvvv सुतघ्नं द्रौण्याभिभवस्तदत्रात्पाण्डव वनम् ।। भीष्मस्य स्वपदप्राप्तः कृष्णस्य द्वारिकागमः ॥ १३ ॥ श्रोतुः परीक्षितो जन्म धृतराष्ट्रस्य निर्गमः ।, कृष्णमय॑त्यागसूचा ततः पार्थमहापथः ॥ १४ ॥ इत्यष्टादशभिः पादैरध्यायार्थः क्रमात् स्मृतः । स्वपरप्रतिबन्धोनं स्फीतं राज्यं जहाँ नृपः ॥ १५ ॥ इति वैराज्ञो दाढ्यक्तौ प्रोक्ता द्रौणिजयादयः । इति प्रथमः स्कन्धः ॥ १ ॥ इत्यादि बारह स्कयों का सूचीपत्र इसी प्रकार बोबद्व पण्डित ने बनाकर हिमाद्रि सचिव को दिया जो विस्तार देखना चाहे वह बोबदेव के बनाये हिमाद्रि ग्रन्थ में देख लेवे। इसी प्रकार अन्य पुराणों की भी लीला समझना परन्तु उन्नीस बीस इक्कीस एक दूसरे से बढकर हैं । देखो' श्रीकृष्णजी का इतिहास महाभारत में अत्युत्तम है उनका गुण, कर्म, स्वभाव र चरित्र प्राप्त पुरुषों के सदृश है जिसमें कोई अधर्म का आचरण श्रीकृष्णजी ने जन्म से भरणपर्यन्त बुरा काम कुछ भी किया हो ऐसा नहीं लिखा और इस भागवतवाले ने अनुचित मनमाने दोप लगाये है दूध, दही, मक्खन आदि की चोरी लगाई और कुत्जादासी से समागम, पस्त्रियों से रासमडल में क्रीडा आदि मिथ्या दोष श्रीकृष्णजी में लगाये हैं इसको पढ़ पढ़ा सुन सुना के अन्य मतवाले श्रीकृष्णजी की वहुतसी निन्दा करते हैं जो यह भागवत न होता तो श्रीकृष्णजी के सदृश महात्माओं की झूठी निन्दा क्योंकर होती ? शिवपुराण में बारह ज्योतिलिङ्ग और जिनमें प्रकाश का लेश भी नहीं रात्रि को विना दीप किये लिंग भी अन्धेरे में नहीं दीखते ये सब लीला पोपजी की है । ( प्रश्न ) जव वेद पढ़ने का सामथ्र्य नहीं रहा तब स्मृति, जब स्मृति के पढने की बुद्धि नहीं रही तब शास्त्र, जव शास्त्र पढ़ने का सामये न रहा तब पुराण वनाये केवल स्त्री और शूद्रों के लिये क्योंकि इनको वेद पढ़ने सुनने का अधिकार नहीं है। (उत्तर) यह बात मिथ्या है, क्योंकि सामथ्ये पढन पढ़ाने ही से होता है और वेद पढने सुनने का अधिकार सव को है देखो गार्गी आदि