पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३५१

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०० ००० ००० ० ० ५५ ५५५...... J५००००० { सर धरा होगा जो अमृत होता तो पुराणियों के मानने के तुल्य कोई क्यों मरता है । । भित्ती की कुछ बनावट ऐसी होगी जिससे नमती होगी और गिरती न होगी रीठे कलम के पैबन्दी होंग अथवा गपड़ा होगा रेवालसर में बेड़ा तरने में कुछ कारीगरी होगी अमरनाथ में बर्फ के पहाड़ बनते हैं तो जल जम के छोटे लिंग का बनना कौन आश्चर्य है और कवृतर के जाडे पालित होंगे पहाड़ की आड़ में से मनुष्य छोड़ते होगे दिखलाकर टका हरते होंगे । (प्रश्न ) हरद्वार स्वर्ग का द्वार हर की पैड़ी में स्नान करे तो पाप छूट जाते हैं। और तपोवन में रहने से तपस्वी होता, देवप्रयाग, गगोत्तरी में गोमुख, उत्तर काशी में गुप्तकाशी, त्रियुगी नारायण के दर्शन होते हैं, केदार और बदरीनारायण की पूजा छः । महीने तक मनुष्य और छः महीने तक देवता करते हैं, महादेव का मुख नैपाल में पशुपति, चूतड़ केदार और तुङ्गनाथ में जानु, परी अमरनाथ में इनके दर्शन स्पर्शन । स्नान करने से मुक्ति होजाती है वहा केदार और बदरी से स्वर्ग जाना चाहे तो जा सकता है इत्यादि बातें कैसी हैं ( उत्तर ) हरद्वार उत्तर से पहाड़ों में जाने का एक । मार्ग का आरम्भ है हर की पैडी एक स्नान के लिये कुण्ड की सीढियों को बनाया है | सच पूछो तो “हाड़पैड़ी है क्योंकि देशदेशान्तर के मृतकों के हाड उसमें पड़ा करत हैं, पाप कभी नहीं कहीं छूट सकता विना भोगे अथवा नहीं कटते “तपोवन जब | होगा तब होगा अब तो “भिक्षुकवन है तपोवन में जाने रहने से तप नहीं होता किन्तु तप तो करने से होता है क्योंकि वहा बहुतसे दुकानदार झूठ बोलनेवाले भी रहते हैं । हिमवत. प्रभवति गगा' पहाड़ के ऊपर से जल गिरता है गोमुख का आकार देका लेनेवालो ने बनाया होगा और वहीं पहाड़ पाप का स्वर्ग है वहां उत्तर काशी आदि स्थान ध्यानियों के लिये अच्छा है परन्तु दुकानदारों के लिये वहा ई भी दुकानदारी है, देवप्रयाग पुराण के गपोड़ों की लीला है अर्थात् जहा अलखनन्दा और गगा मिली है इसलिये वह देवता वसते हैं ऐसे गपोड़े न मारें तो वहां कौन जाय १ और टका कौन देव ? गुप्तकाशी तो नहीं है वह तो प्रसिद्ध काशी है तीन युग की धुनी तो नहीं दीखती परन्तु पापों की दश बीस पीढी को होगी जैसी खासियों की धुन और पासियों की अग्यारी सदैव जलती रहती है, तप्तकुण्ड भी पहाड़ों के भीतर ऊष्मा गर्मी होती है उसमें तप कर जल आता है उसके पास दूसरे कुण्ड में ऊपर का जल वा जहाँ गर्मी नहीं वहा का आता हैं इससे ठण्डा है, केदार का स्थान वह