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भ्रस्यभेॐ. ।।।

भेट
पूजा धरेंगे तो वे स्वयं खा लेंगे और भेटे पूजा लेंगे तो हमारे मुख वा हाथ में कुछ न पड़ेगा इससे पाषाणादि की मूर्ति बना उसके आगे नैवेद्य धर घंटानाद ढंटे पृएं और शंख वजा, कोलाहल कर, अंगूठा दिखला अर्थात् त्वमंगुष्ठ गृहाण भोजन पदार्थ वाऽह प्रहीष्यामि जैसे कोई किसी को छल वा चिड़ावे कि तू घटा ले और अंगूठा • दिखलावे उसके आगे से सब पदार्थ ले अप भोगे वैसी ही लीला इन पूजारियों अर्थात् पूजा नाम सत्कर्म के शत्रुओं की है। ये लोग चटक मटक चलक झलक मूर्तियां

को वना ठना आप ठगों के तुल्य वन ठन के विचारे निर्बुद्धि मूढ़ अनाथों का माल . मारके मौज करते हैं जो कोई धार्मिक राजा होता तो इन पाषाणप्रिय को पत्थर तोड़ने बनाने और घर रचने अदि कामों में लगाके खाने पीने को देता निर्वाह कराता ( प्रश्न) जैसे स्त्री आदि की पाषाणादि मूर्ति देखने से कामोत्पत्ति होती है वैसे वीतराग शान्ति } की मृत्ति देखने से वैराग्य और शान्ति की प्राप्ति क्यों न होगी ? (उत्तर) नहींहो कती, क्योंकि वह मृत्ति के जड़त्व धर्म आत्मा में आने से विचार शक्ति घटजाती हैं विवेक के विना वैराग्य, वैराग्य के विना विज्ञान और विज्ञान के विना शान्ति नहीं होती और जो कुछ होता है सो उनके सङ्ग उपदेश और उनके इतिहासादि के देखने से होता है क्योकि जिसका गुण वा दोष न जानके उसकी मृत्तिमात्र देखने से प्रीति नहीं होती प्रीति होने का कारण गुणज्ञान हैं। ऐसे मूर्तिपूजा आदि बुरे कारण ही से आर्यावर्त में निकम्मे पृजारी भिक्षुक लसी पुरुषार्थ राहत क्रोडों मनुष्ये हुए हैं सब संसार में मूढता उन्हींने फैलाई है झूठ छल भी बहुतसा फैला है (प्रश्न) देखो काशी में औरङ्गजेब बादशाह को ‘लाटभैरव अदि ने व२ चमत्कार दिखलाये थे जब मुसलमान उनको ताउने गये और उन्होंने जव उन पर तोप गोला आदि मारे तव बड़े २ भमरे निकलकर सव फौज को व्याकुल कर भगादिया। (उत्तर) यह पापण का चमत्कार नहीं फिन्तु वहां भमरे के छत्त लगरहे होंगे उनका स्वभाव ही क्रूर है जब कोई उनको छ। तो वे काटने को दौड़ते हैं। और जो दूध की धारा का चमत्कार होता था वह पूजा जी की लीला थी। ( प्रश्न ) देखो महादेव म्लेच्छ को दर्शन न देने के लिये कृप में ! और वेणीमाधव एक ब्राह्मण के घर में जाछिपे क्या यह भी चमत्कार नहीं है ? ( उत्तर } भला जिसके कोटपाल कालभैरव लाटभैरव अादि भूत प्रेत और गरुड अादि गए, उन्होंने मुसलमान को लइके क्यों न हटाये ? जव महादेव और विष्णु ॐ पुणे में कया है कि अनेक त्रिपुरासुर आदि बड़े २ भयङ्कर दुष्टे का भम ।३दिया तः मुसलमानों का भत्न क्यों न किया ? इससे भिद्ध होत ६६