पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३३४

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३२४ | सत्यार्थप्रा ।।। -=-=-=

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सुनी तब तो सच ही मानली और उनसे पूछा कि ऐसी वह मूर्ति कहां पर हैतव | तो पोपजी बोल कि अमुक पहाड़ वा जङ्गल में है चलो मेरे साथ दिखलायूं तव तो वे अन्धे उस धूर्त के साथ चलके वहां पहुँच कर देखा आश्चर्य में होकर उस पोपके पग में गिर कर कहा कि आपके ऊपर इसे देवता की बड़ीही कृपा है अब आप ले चलिये और हम मंदिर बनवा देवेंगे उसमें इस देवता की स्थापना कर आप ही पूजा करना और हम लोग भी इस प्रतापी देवता के दर्शन स्पर्शन करके मनोवांछित फल पावेंगे । इसी प्रकार जव एक ने लीला रची तव तो उसको देख सव पोप लोगों ने अपनी जीविका छल कपट से मूर्तिया स्थापन की। (प्रश्न) परमेश्वर निराकार है वह ध्यान में नहीं आ सकता इसलिये अवश्य मूर्ति होनी चाहिये भला जो कुछ भी नहीं करें तो मूर्ति के सम्मुख जा हाथ जोड़ परमेश्वर का स्मरण करते और नाम लेते है इसमें क्या हानि है? (उत्तर) जब परमेश्वर निराकार सर्वव्यापक है तब उसकी मूर्ति ही नहीं बन सकती और जो मूर्ति के दर्शनमात्र से परमेश्वर का स्मरण होवे तो परमेश्वर के बनाये पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति आदि अनेक पदार्थ जिनमें ईश्वर ने अद्भुत रचना की है। क्या ऐसी रचनायुक्त पृथिवी पहाड़ आदि परमेश्वर रचित महामूर्तियां कि जिन पहाड आदि से मनुष्यकृत मूर्तियां बनती हैं उनको देखकर परमेश्वर का स्मरण नहीं हो सकता ? जो तुम कहते हो कि मूर्ति के देखने से परमेश्वर का स्मरण होता है वह तुम्हारा कथन सर्वथा मिथ्या है थौर जब वह मूत्तिं सामने न होगी तो परमेश्वर के स्मरण न होने से मनुष्य एकान्त पाकर चोरी जारी आदि कुकर्म करने में प्रवृत्त भी हो सकता है क्योंकि वह जानता है कि इस समय यहा मुझे कोई नहीं देखता इसलिये वह अनर्थ करे विना नहीं चूकता इत्यादि अनेक दोष पाषाणादि मूर्तिपूजा करने से सिद्ध होते हैं। अब देखिये ! जो पाषाणादि मूर्तियों को न मानकर सर्वदा सर्वव्यापक सर्वान्तर्यामी न्यायकारी परमात्मा को सर्वत्र जानता और मानता है वह पुरुष सर्वत्र सर्वदा परमेश्वर को सब के बुरे भले कर्मों का द्रष्टा जानकर एक क्षणमात्र भी परमात्मा से अपने को पृथक् न जान के कुकर्म करना तो कहा रह। किन्तु मनमें कुचेष्टा भी नहीं कर सकता क्योंकि वह जानता है जो मैं मन वचन और कर्म से भी कुछ बुरा काम करूंगा तो इस अन्तर्यामी के न्याय से विना दण्ड पाये कदापि न बचेगा और नाम स्मरणमात्र से कुछ भी फल नहीं होता जैसा कि मिशरी२कहने से मुंह मीठा और नीव २हुने । से इक न होता किन्तु जीभ से चावने ही से मीठ वा डुवापस जाना जाता है। | (प्रश्न ) क्या नाम लेना सर्वथा मिथ्या है जो सर्वत्र पुराण में नामस्मरण का बड़ा