पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३३१

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एकादशसुवाः ।। ३२१ श्रीमन्नारायणचरणं शरणं प्रपद्ये ॥ श्रीमते नारायणाय नमः । श्रीमते रामानुजाय नमः ।। इत्यादि मन्त्र धनाढ्य अर माननीयो के लिये बना रक्ख हैं । देखिये यह भी एक दुकान ठइरी ! जैसा मुख वैसा तिलक ! इन पांच सस्कारों का चकाकत माफ़ के हेतु मानते हैं। इन मन्त्र का अर्थ-में नारायण का नमस्कार करता है । और में लक्ष्मोयुक्त नारायण के चरणारविन्द के शरण को प्राप्त होता हैं । और प्रयुक्त नारायण का नमस्कार करता हू अर्थात् ज शोभायुक्त नारायण है उसको मेरा नमस्कार हो । जस वामभाग पांच मकार मानत हैं वस चक्रांकित पांच मस्कार मानत है अपने शख चक्र स दाग देने के लिये जा वेदमन्त्र का प्रमाण रक्खा है उसका इस प्रकार का पाठ और अर्थ है:--- पवित्रं ते वितंतं ब्रह्मणस्पत प्रभुगात्राणि पर्यैष विश्वतः । अतंतनूनं तदामो अश्नुते शृताम इद्वहंन्तस्तत्समशत ।। १ ॥ तपोष्पवित्रं बिततं द्विवस्पद ।। २ ।। ऋ० मं० है । सू० ८३ । मन्त्र १ । २ ।। है ब्रहाण्ड और वदों के पालन करनेवाले प्रभु सर्वसामध्यंयुक्त सर्वशक्तिमान् आपने अपनी व्याप्ति से ससार के सब अवयवों को व्याप्त कर रखा है उस आप का जा व्यापक पन्निवस्वरूप है उसको ब्रह्मचर्य, सत्यभाषण, शम, दम, योगाभ्यास, जितेन्द्रिय, सत्सगादि तपश्चर्या से रहित जो अपरिपक्व आत्मा अन्त,करणयुक्त है। वह उस तेरे स्वरूप को प्राप्त नहीं होता और जो पूर्वोक्त तप से शुद्ध हैं वे ही इस तप का आचरण करते हुए उस तेरे शुद्धस्वरूप को अच्छे प्रकार प्राप्त होते हैं।। १ ।। जो प्रकाशस्वरूप परमेश्वर की सष्टि में विस्तृत पवित्राचरण रूप तप करते है वे ही परमात्मा को प्राप्त होने में योग्य होत हैं॥ २॥ अब विचार कीजिये कि रामानुजीयदि लोग इस मन्न से “चक्राङ्कित होना सिद्ध क्योंकर करते हैं ? भला कहिये । । व विद्वान् थे वा अविद्वान् ? जो कहो कि विद्वान् थे तो ऐसा असम्भावित अर्थ इस मन्त्र को क्यों करते है क्योंकि इस मन्त्र मे अतप्ततनू' शब्द है किन्तु अ-- तप्तभुजैकदेश." नहीं पुन छ तप्ततनू यह नख शिखापर्यन्त समुदायार्थक है इम ।