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उस ईश्वर का नाम “शङ्कर” है । “महत्” शब्द पूर्वक “देव” शब्द से “महादेव” सिद्ध होता है “यो महतां देवः स महादेवः” जो महान् देवों का देव अर्थात् विद्वानों का भी विद्वान सूर्यादि पदार्थों का प्रकाशक है इसलिये उस परमात्मा का नाम “महादेव” है । (प्रीञ् तर्पणे कान्तौ च) इस धातु से “प्रिय” शब्द सिद्ध होता है “यः पृणाति प्रीयते वा स प्रियः” जो सव धर्मात्माओं मुमुक्षुओं और शिष्टों को प्रसन्न करता और सब के कामना के योग्य है इसलिये उस ईश्वर का नाम “प्रिय” है । (भू सत्तायाम्) “स्वयं” पूर्वक इस धातु से “स्वयम्भू” शब्द सिद्ध होता है “यः स्वय भवति स स्वयम्भूरीश्वरः” जो आप से आप ही है किसी से कभी उत्पन्न नहीं हुआ है इससे उस परमात्मा का नाम “स्वयम्भू” है। (कु शब्दे) इस धातु से “कवि” शब्द सिद्ध होता है। “यः कौति शब्दयति सर्वा विद्या स कविरीश्वरः” जो वेदद्वारा सब विद्याओं का उपदेष्टा और वेत्ता है इसलिये उस परमेश्वर का नाम “कवि” है । (शिवु कल्याणे) इस धातु से “शिव” शब्द सिद्ध होता है “बहुलमेतन्निनिदर्शनम्” इससे शिव धातु माना जाता है, जो कल्याणस्वरूप और कल्याण का करनेहारा है इसलिये उस परसेश्वर का नाम “शिव” है ॥


ये सौ नाम परमेश्वर के लिखे हैं, परन्तु इनसे भिन्न परमात्मा के असंख्य नाम हैं क्योंकि जैसे परमेश्वर के अनन्त गुण कर्म स्वभाव हैं वैसे उसके अनन्त नाम भी हैं उनमे से प्रत्येक गुण कर्म्म और स्वभाव का एक २ नाम है इससे यह मेरे लिखे नाम समुद्र के सामने बिन्दुवत् हैं क्योंकि वेदादि शास्त्रों में परमात्मा के असंख्य गुण कर्म स्वभाव व्याख्यात किये हैं, उनके पढ़ने पढ़ाने से बोध हो सकता है और अन्य पदार्थों का ज्ञान भी उन्हीं को पूरा २ हो सकता है जो वेदादि शास्त्रों को पढ़ते हैं ॥

<a name=मङ्गलाचरणसमीक्षा></a> (प्रश्न) जैसे अन्य ग्रन्थकार लोग आदि मध्य और अन्त में मङ्गलाचरण करते हैं वैसे आपने कुछ भी न लिखा और न किया ? (उत्तर) ऐसा हमको करना योग्य नहीं क्योंकि जो आदि मध्य और अन्त में मङ्गल करेगा तो उसके ग्रन्थ में आदि मध्य तथा अन्त के बीच में जो कुछ लेख होगा वह अमङ्गल ही रहेगा। इसलिए “मंगलाचरणं शिष्टाचारात्फलदर्शनाच्छ्रुतितश्चेति” यह सांख्यशास्त्र का वचन है। इस का यह अभिप्राय है कि जो न्याय पक्षपातरहित सत्य, वेदोक्त ईश्वर की आज्ञा है उसी का यथावत् सर्वत्र और सदा आचरण करना मङ्ग-