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सत्यार्थ१६३. । - - ---


-- -- - - दश सहस्र २लेको के प्रमाण भारत बनाया था। बहू महाराजा विक्रमादित्य के समय मे वीस सहस्र, महाराजा भोज कहते हैं कि मेरे पिताजी के समय में पचास और अब मेरी आधी उमर में तीस सहस्र श्लोकयुक्त महाभारत का पुस्तक मिलता है जो ऐसे ही बढ़ता चला तो महाभारत का पुस्तक एक ऊट का बोझा हो जायगा | और ऋषि मुनियों के नाम से पुराणादि ग्रन्थ वनावेगे तो आर्यावर्तीय लोग भ्रमजाल में पड़के वैदिकधर्मविहीन होके भ्रष्ट हो जायगे । इससे विदित होता है कि राजा भोज का कुछ २ वदो का संस्कार था इनके भोजप्रवन्ध में लिखा है कि.--- घट्यैकया झोशदशैकश्वः सुकृत्रिम गच्छाति चारुगत्या । वायु ददाति व्यजनं सुपुष्कलं विना मनुष्येण चलत्यजस्रम् ॥ राजा भोज के राज्य में और समीप ऐसे २ शिल्पि लोग थे कि जिन्होने घोडे के अकार एक यान यन्त्रकलायुक्त बनाया था कि जो एक कच्ची घड़ी में ग्यारह कोश और एक घंटे में साढे सत्ताईस कोश जाता था वह भुभि और अन्तरिक्ष में भी चलता था और दूसरा पंखा ऐसा बनाया था कि बिना मनुष्य के चलाये कलायन्त्र के बल से नित्य चला करता और पुष्कल वायु देता था जो ये दोनों पदार्थ आजतक बने रहते तो यूरोपियन इतने अभिमान में न चढ़ जाते । जव पोपजी अपने चेलों को जैनियो से रोकने लगे तो भी मन्दिर में जाने से न रुक सके और जैनियों की कथा में भी लोग जाने लगे जैनियों के पोप इन पुराणियों के पोप के चेले को दहलाने लगे तब पुराणियों ने विचार कि इसका कोई उपाय करना चाहिय नहीं तो अपने चेले जैनी होजायगे पश्चात् पोप ने यही सम्मति की कि जैनियों के सदृश अपने भी अवतार मन्दिर मत और कथा के पुस्तक वनावे इन लोगों ने जैनियों के चौबीस तीर्थंकरों के सदृश चौबीस अवतार मन्दिर और मसिंया युनाई और जैसे जैनियों के आदि और उत्तर पुराणादि हैं वैसे अठारह पुराण बनाने लगे । राजा भोज के डेढसौ बर्ष के पश्चात् वैष्णवमत को प्रारम्भ हुआ एक शठकोप नामक कजरवर्ण में उत्पन्न हुआ था उससे योटासाला उसके पश्चात् मनिवाहन भगाकलोत्पन्न और तीसरा यवनाचार्य यवनकुत्पन्न ।चार्य । तत्पश्चातु ऋाह्मण कलुज चैथा रारानुज हुआ उसने अपना मन फला: ।। शैव ने शिवपुराणादि, शाक्तों में देवीभागवतादि, वैष्णव ने विष्णुपु} 1 वः । इनमें अपना नाम इसलिये नहीं दे कि हमारे नाम से बनेगे तो कोई