पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३१०

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| सत्यार्थप्रकाश ।। ३ पश्चात् इन लोगो का मत बहुत चला तव धूर्तता करके वेदों के नाम से भी वाममार्ग की थोड़ी २ लीला चलाई अर्थात्. सोन्नासधयां सुरां पिवेत् । प्रोक्षितं भक्षयेन्नास वैदिक हिंसा हिंसा न भवति ॥ न मांसभक्षणे दोषो न मद्ये न च मैथुने । प्रवृत्तिरेया भूतानां निवृत्तिस्तु महाफला । मनु० अ० ५। ५६ ॥ साण यज्ञ में मद्य पीवे इसका अर्थ यह है कि सोनाणि यज्ञ में सोमरस अर्थात् सोमवल्ली का रस पिये प्रोक्षित अर्थात् यज्ञ में मास खाने में दोप नही ऐसी पामरपन की बातें वाममागियों ने चलाई है उनसे पूछना चाहि कि जो वैदिकी | सिर ६.सा न ६ तो तुF और तेरे कुटुम्ब को मार के हाम कर डाले तो क्या चिन्ता '३ ।। मासभ करने, ना पीने, परस्त्रीगमन करने आदि में दोप नहीं है यह कहना ' छोपन ३ क्य% विना प्राणियों के पीडा दिये मास प्राप्त नहीं होता और विना अपराध के पीठ: देना धर्म का काम नहीं मद्यपान का तो मा निपथ ही है क्योंकि 15 वाम गया के बिना किसी अन्य में नहीं लिखा किन्तु सर्वत्र निषेध है और नई दिः के मैन में भी लोग हैं इसके निप कहनेवाला सदाप है ऐसे ऐसे । रन भी पयः ॐ ग्रन्थ में डाल के कितने ही कपि मुनियों के नाम से ग्रन्थ बना। ६५ ।।५, ४३२ नई ६ ग भी करने लगे थे अर्थ इन पशुओं को मारके { { म गइनान र प र वर्ग : १ त ?' मा प्रद्धि का निश्चय { ।।६ ७ ।। 11 अन्य 15 (३५, गमय, नर : गई उन का ठीक : ६६ :१६१ 21:{{ ६ ६ ६ ६ ६ । म न ६५ ? ( प्रश्न) अश्वमेव, •••४, ५। ५५: :: ८६ सः + ? ( उत्तर } : 1 : यः ४fb.--- 11 वा 'अमः । शन, १३ ! ? । ६ । ३ ।। :::::: }}ः । जुन ३ } ३ } ? । २५ ।। अग्नि 57 { *: 11 शुनप यार !!