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अनु ओों आई ॥

यह बात सिद्ध है कि पांच सहम्छ वर्षों के पूर्व वेद मत से भिन्न दूसरा कोई भी मत न था क्योंकि वेदोक्त सब बाते विद्या से अविरुद्ध हैं, वेदों की आप्रवादित होने का कारण महाभारत युद्ध हुआया । इनकी अप्रवृत्ति से अविद्याsधकार के भू गोल में मनुष्यों बुद्धि होकर जैकी विस्तृत होने से की भ्रमयुक्त जिसके मन में आया वैसा मत चलाया उन सब मतो मे ४ ) चार मत अर्थात् जो वेदविरुद्ध पुराण, जैनी, किरानी और रानी सख मतों के मूल हैं वे क्रम से एक के पीछे दूसरा तीसरा चौथा चला है अब इन चारों की शाखा एक सत्र से कम नहीं है इन सब मतवादियों इनके चेलों और अन्य सब को परस्पर सत्यासस्य के विचार करने में आधिक परिश्रम न हो इसलिये यह ग्रन्थ वHाया है जो २ इसमें सर्ण का मत । मण्डन और असत्य का खण्डन लिखा है वह सब को जानना ही प्रयोजन समता गया है इसमें जैसी मेरी बुद्धि जितनी विद्या और जितना इन चारों मतों मूल के ग्रन्थ देखने से बोध हुआ है उसको सध के आगे निवेदित कर देना मैंने चम समझा है क्योंकि विज्ञान गुप्त हुए का पुनर्मिलना सहज नहीं है । पक्षपात छोडूर इस ठो ! ? देखने से सत्या सत्य मत सब को बिदित हो जायगा पश्चात् सध को अपनी : । सस के अनुसार सत्य मत का ग्रहण करना & र असत्य मत ो 1ो इन स्त ? होगा इनमें से जो पुराणदि प्रन्थों से शाखा शाखान्तररूप मत आर्यावर्त देश में अकेले • थे ।