पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२७०

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सयामश 21 5 - A थे। सुख दु:ख संसार से देखकर पूर्व जन्म का ज्ञान क्यों नहीं करते । जैसे एक अवैद्य और एक वैद्य को कोई रोग हो उसका निदान अथोत् कारण वैद्य जान लेता है और आविद्वान् नहीं जान सकता उसने वैद्य विद्या पढ़ी है और दूसरे ने नहीं प२ न्तु वदि रोग के होने से अवैद्य भी इतना जान सकता है कि मुझ से कोई कुपथ्य हो गया है जिससे मुझे यह रोग हुआ है वैसे ही जगत् में विचित्र सुख दुःख आदि की घटती बढ़ती देख के पूर्व जन्म का अनुमान क्यों नही जान लेते है और जो पूर्व जन्म को न मानोगे तो परमेश्वर पक्षपाती हो जाता है क्योंकि बिना पाप के दारि यादि दु:ख और बिना पूर्वसाछिवत पुण्य के राज्य धनाढयता और नियुद्धिता उसको क्यों दी है और पूर्व जन्म के पाप पुण्य के अनुसार दु:ख सुख के देने से परमेश्वर न्यायारी यथावत् रहता है ( प्रश्न ) एक जन्म होने ने भी परमेश्वर न्यायकारी हो सकता है जैसे सर्वोपरि रजा जो करे सो न्याय जै से सली अपने उपवन में छोटे और बड़े वृक्ष लगाता किसी को काटता उखाड़ता और किसी की रक्षा कर त बढ़ाता है जिसकी जो वस्तु है उसको वह है जैसे रक्खे उसके ऊपर कोई भी दूसरा न्याय करनेवाला नहीं जो उसको दण्ड दे सके व ईश्वर किसी से डरे 1( उत्तर) परमात्मा जिसलिये न्याय चाहत करता न्याय कभी नहीं करता इसीलिये वह पूजनीय और बड़ा है जो न्यायविरुद्ध करे वह ईश्वर ही नहीं जैसे माली युक्ति के बिना मार्ग वा अधान में वृक्ष लगान,न काटयाग्य को कटने, अयोग्य को बढ़ाने, याम्य को न बढ़ान से दूषित होता है इसी प्रकार बिना कारण के करने से ईश्वर को दोष लगे १रमेश्वर के ऊपर न्याययुक्त काम करना अवश्य है क्योंकि वह स्वभाव से पवित्र और न्याय कारी ई जो उन्मत्त के समान काम करे तो जगत् के श्रेष्ठ न्यायाधीश से भी न्यून और अम- तिष्ठित होंने क्या इस जगत् में विना योग्यता के उत्तम काम किये प्रतिष्ठा और दुष्ट काम केंय चिना दण्ड देनेवाले निन्दनीय अप्रतिष्ठित नहीं होता ' इ। लिये ईश्वर अ न्याय नहीं करता इसीसे किसी से नहीं डरता।( प्रश्न ) परमात्मा ने प्रथम ी से जिस के लिये जितना देना विचार है उतना देता और जितना काम करना है उतना करता है। ( उतर ) उसका विचार जीवों कलुसार होता है अन्यथा नहीं जो अन्यथा हो तो वह अपराधी अन्यायकारी होवे ( प्रश्न ) बड़े छोटों को एकसा ही सुख दु ख है ों को डी चिन्ता और रछोटों को छोटी-जैसे किसी साहूकार का विवाद राजघर में ल। रूपये का हो तो वहं १ने बर से प।लकी में बैठकर कचहरी से दुष्ण काल से ा दो बार में हो के को जाता देखर आज्ञानी लोग कहते है कि देखो पुण्य