पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२५७

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- - - - - - . नवमसमुहास: ॥ meani.... ............ . ..more यह भी बात अविद्वानो की है क्योंकि आकाश कभी छिन्न भिन्न नहीं होता व्यवहार मे भी " घडा लाओ " इत्यादि व्यवहार होते हैं कोई नहीं कहता कि घड़े का आकाश लाओ इसलिये यह बात ठीक नहीं । (प्रश्न ) जैसे समुद्र के वीच में मच्छी कीडे और आकाश के बीच में पक्षी आदि घूमते हैं वैसे ही चिदाकाश ब्रहा में सब अन्तःकरण घूमते है वे स्वयं तो जड़ हैं परन्तु सर्वव्यापक परमात्मा की सत्ता से जैसा कि अग्नि से लोहा वैसे चेतन हो रहे हैं जैसे वे चलते फिरत और आकाश तथा ब्रह्म निश्चल है वैसे जीव को ब्रह्म मानने में कोई दोप नहीं आता । ( उत्तर ) यह भी तुम्हारा दृष्टान्त सत्य नहीं क्योंकि जो सर्व- व्यापी ब्रह्म अन्त करणों में प्रकाशमान होकर जीव होता है तो सर्वज्ञादि गुण उस मे होते है वा नहीं ? जो कहो कि आवरण होने से सर्वज्ञता नहीं होती तो कहो कि ब्रह्म आवृत्त और खण्डित है वा अंखण्डित १ जो कहो कि अखण्डित है तो बीच मे कोई भी पडदा नहीं डाल सकता जब पडदा नहीं तो सर्वज्ञता क्यों नहीं ? जो कहो कि अपने स्वरूप को भूलकर अन्त करण के साथ चलतासा है स्वरूप से नही जय स्वय नहीं चलता तो अन्त करण जितना २ पूर्व प्राप्त देश छोड़ता और आगे आगे जहा २ सरकता जायगा वहां - का ब्रह्म भ्रान्त, अज्ञानी हो जायगा और जितना २ छुटता जायगा वहा २ का ज्ञानी, पवित्र और मुक्त होता जायगा इसी + प्रकार सर्वत्र सृष्टि के ब्रह्म को अन्त,करण बिगाड़ा करेंगे और बन्ध मुक्ति भी क्षण श्रण में हुअा करेगी तुम्हारे कहे प्रमाणे जो वैसा होता तो किसी जीव को पूर्व देखे सुने का स्मरण न होता क्योंकि जिस ब्रह्म ने देखा वह नहीं रहा इसलिये ब्रह्म | जीव जीव ब्रह्म एक कभी नहीं होता सदा पृथक् २ हैं (प्रश्न ) यह सब अव्या- | रोपमात्र है अर्थात् अन्य वस्तु में अन्य वस्तु का स्थापन करना अव्यारोप कहाता है वैसे ही ब्रह्म वस्तु मे सब जगत् और इसके व्यवहार का अध्यारोप करने से जिज्ञासु को बोध कराना होता, है वास्तव में सब ब्रह्म ही है ( प्रश्न ) अध्यारोप का करनेवाला कौन है ? ( उत्तर ) जीव ( प्रश्न ) जीव किसको कहते हो ? (उत्तर) अन्त करणावच्छिन्न चेतन को ( प्रश्न ) अन्त करणावच्छिन्न चेतन दूसरा है वा वही ब्रह्म ? ( उत्तर ) वही ब्रह्म है (प्रश्न ) तो क्या ब्रह्म ही ने अपने में | जगन् की झूठी कल्पना करली ? ( उत्तर ) हो, ब्रह्म की इससे क्या हानि । | ( प्रश्न ) जो मिथ्या कल्पना करता है क्या वह झूठा नहीं होता ? { उत्तर नहीं, क्योंकि जो मन वाणी से कल्पित वा कथित है वह सब झूठा है । ( प्रश्न )