पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२५४

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- 2 -13, ९ के आय नवमसमुल्लातार:॥ ने । (ख्ख् 2aहुछ टटी : आशा अथ विद्या विद्यावन्वमोक्षविषया व्याख्यास्यामः ॥ विद्यi lsविद्यां व यस्तढ़ोभयंसह । आविषया मृत्यु तीत्व विषययsमृतमश्ढते ॥ यजु० ॥ अ० ४० । म० १४ ॥ जो मनुष्य विद्या और अविद्या के स्वरूप का साथ ही साथ जानता है बंद अविद्या अथोत् कपासना से मृत्यु को तर के विद्या अर्थात् यथार्थ ज्ञान से मोक्ष को प्राप्त होता है । आखिया का लक्षणः- अनित्याधुचिदुःखानारमख नित्यशुचिसुखात्मख्यातिरवि- घा ॥ पात’ द० लाधनषाद सू° ५ ॥ यह योग सूत्र का वचन है-जो आनित्य संसार और देह।दि में नित्य अर्थात् जो काये जगन् देखा सुना जाता है, सदा रहेगा, सदा से है और योग बल से यहीं ? दवा का शरीर सदा रहता है , वैसी विपरीत बुद्धि होना चाविद्या का प्रथम भाग है, ! अशु अर्थात् मलमय स्ययदि के और मियाभाषण चोरी आदि अपवित्र में पवित्र बुद्ध दूसरा, अत्यन्त विषयलेबनरूप टु ख में सुखबुद्धि आदि तीसरt, अनामा में अरमबुद्धि करना अविद्या का चौथा भाग है, यह चार प्रकार का विपरीत ज्ञान अविद्या है। कहृाती हूँ / ई सस विपरीत अर्थात् अनित्य में अनित्य र निल्य में नित्य , अ - ! वित्र में अपवित्र और पवित्र ने पवित्र, टु ख में दुःख, सुख में सुखअनामा में ! अनारगऔर आात्मा से मात्मा का ज्ञान होना विद्या है अर्थात् ‘‘त्ति यथावत्तवपदार्थ - ? स्प यया सा विद्या या नववर्ष न जाति भाद्रन्यास्मिन्नन्यत्रिविमोति या ख5वद्य। जिससे पदाfा यथार्थ स्वरूप बोध ोखे व इ विद्या और जिस से तवस्स-