पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२३४

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२२४ सत्यार्थ ने 5Tा: । और प्राप्त होता है वहूं अन्यथा कभी नहीं हो सकता ?( प्रश्न ) जगत् के माने में परमेश्वर का क्या प्रयोजन है ?( उतर ) नहीं बनाने में क्या प्रयोजन है ? ( प्रश्न ) जो न बनाता तो आनन्द में बना रहता और जीवों को भी सुछ टु ख प्राप्त न होता है ( उत्तर ) यह आलसी और दरिद्र लोगों की बातें हैं पुरुषों की नई और जीवों को प्रलय में क्या सुरु का दु रब है जो सृष्टि के पुत्र दुरू की ' तुलना की जाय तो मुख कई गुणा अधिक होता और बहुत से पवित्रात्मा जषि मुक्ति के साधन कर मोक्ष के आनन्द को भी प्राप्त होते हैं लय में निकन्में जैसे - ॥ पुप्ति में पड़े रहते हैं और प्रलय के पूर्व स्मृष्टि में जीवों के लिये पाप पुण्य कमों का फल ईश्वर कैसे दे सकता और जीव क्योंर भोग सकते १ जो तुम से कोई पूछे कि आंख के होने में क्या प्रयोजन हैं ? तुम यही कहोगे देखता 1 तो जो ईश्वर म जगन् की रचना करने का विज्ञान बल और क्रिया है इस का क्या प्रयोजन विना जगन की उत्पत्ति करने के ? दरण कुछ भी न कह सकारों और परम।रमा के न्याय धारण दया आदि गुण भी तभी सार्थक हो सकते हैं जब जगत् क बनाव उसका अनन्त सामथ्र्य जगत की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय और व्यवस्था करने f स सफल है जैसे नेत्र का स्वाभाविक गुण देखना है वैसे परमेश्वर का स्वाभाविक गुण जगत की उत्पत्ति कर व जीवों को असरूप पद देकर परोपकार करन दें । ' ( प्रश्न ) बीज पहले हैं व वृक्ष ( उत्तर ) बीज, क्योंकि बीज. हेतु निदान निर्मित ( और कारण इत्यादि शब्द एकार्थ वाचक है कारण का नाम बीज होने से कार्यो के प्रथम ही होता है ( प्रश्न ) जब परमेश्वर सर्वशक्तिमान है तो वह कारण और जीव को भी - ' त्पन्न कर सकता है जो नहीं कर सकता तो सर्वशक्तिमान् भी न रइसकता १ 1 उर । ; । सर्वशक्तिमान् शब्द का अर्थ पूर्व लिख आये हैं परन्तु क्या सर्वशक्तिमवह कहता है कि जो असम्भव बात को भी कर सके ? जो कोई असम्भव बात अन् जैसा ! कारण के बिना कार्य को कर सकता है तो विन" का " दूसरे ईश्वर की आरक्षित कर और स्वयं जड़ वी, अन्याय। री अपवित्र और कुकर्म आदि हैं'। मृत्यु को प्राप्त दु. सकता है वा नहीं है जो स्वाभाविक नियम अनु जैसा अग्नि , जल शरियल । और पृथियादि सब जों विपरीत ईश्वर कर को गुणवाले भी नहीं सकता श्र ईश्वर के नियम सत्य और पूरे हैं इसलिये परिवर्लन नहीं करंसकता इसलिये सर्वे किसान का अर्थ इतना ही है कि परमात्मा विना सिंह के स।य के अपने सब काय !