पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२२२

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के हक में २१२ सवेक्कन और सर्वव्यापक होने से जiयों को अपनी व्याiत स बंद विद्या क उपदेश करने में कुछ भी मुखादि की अपेक्षा नहीं है, क्योंकि मुख जिला से, वणों- चारण अपने से भिन्न के वध होने के लिये किया जाता है कुछ अपने लिये नहीं। क्य।i सुख जिद्द के व्यापार कर देना मन में अनेक व्यवहार का विचार i - ऑर अलारण दाता रहता है कानों की अगुईलया से सूद के हखां सुना के त्रिना मुख जिला ताल्वचादि स्थानों के कैंसे २ शव्द हो रहे हैं, वैसे जीवों को अन्त ' यौमीरूप से उपदेश किया है iकेन्त केवल दूसरे को समझाने के लिये उच्चारण करने की आवश्यकता है 1 जत्र परमेश्वर निराकार सर्वव्यापक है न अपनी ' अखिल बेट विद्या का उपदेश जीवस्थ स्वरूप से जीवाड़ा में प्रकाशित कर देता है फिर वह मनुष्य अपने मुख से उच्चारण करके दूसरे को सुनाता है इसलिये ईश्वर में यह दोष नहीं आकता। ( प्रश्न ) जिनके आत्मा में कब बेबो का प्रकाश i किया । ( उतर ) अनउग्वेद बायोडवेंद: सूयोरसामवेदः ? शुद - ११ । ४ से २ से ३ ॥ प्रथम सृष्टि की आदि में परमात्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य तथा अहिरा इन ' ऋपिया के अल्ना मे एक २ वेट का प्रकाश किया'। प्रश्न ) : यो ब्रह्माणु चिदधाति पूर्व यो वे बेदश्व प्रहियोति हमें ॥ वाश्व० अ० ई: ० १८ । ईम व वन से ब्रह्माजी के हृदय से वेदों का उपदेश किया है फिर अग्न्यादि ? ऋल पेड़ के ग्राम में क्यों कहू ? ( उत्तर ) ब्रह्मा क आम म अनि आदि के के द्वारf tiन कर र1ा, देखो ! मन ने क्या लिखा है -- अग्निविघस्तु ऋष ब्रह्म सनातनम् । इदोह यaिvग्य: सामलक्षण ॥ मनु० १ । २३ ॥ जिस परस ने ना म आदि मूटि में मनुष्यों को उत्पन्न करके अरिन आदि चारों पंथियों द्वार है। क्रमा AHम राये और बाधु के वेद को उस ब्रह्मा ने अग्नि यात्स्यि औ८ मारt ने मई. सAमें और ‘पद का प्रण किया । प्रन ) उन चारों ! ही में वे द जा न 121 गेंद में नहीं इससे ईश्वर पपात इता है। (उत्तर) :