पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२१९

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२ चिकि 4 A -५

- हैं - खण्डन करते हो । ( उत्तर ) किचित साधन्धे मिलने से एकता नहीं हो सकती । से पधी जड दृश्य है बने जल आर अग्नि आदि भी जड़ और दृश्य हैं इतने से एकता नहीं होती विरुद्ध बम जल गन्ध, रूक्षता इनमें वैधय भेदकारक अन कठि*य गुण पृथिवी और रस कोमलरवादि धर्म जल और दृह अiद द्रवत्व रूप कस्बाद धर्म आग्नि के होने से एकत नकद । जैसे मनुष्य कीड़ी आंख देखते दfअरस मुख से खाते और पग से चलते हैं तथापि मनुष्य की आति दो पग और कीडी की आकृति अनेक आदि भिन्न होने से होती वैने पर मेश्वर पग एकता नहीं क अनन्त ज्ञान आनन्द बल क्रिया निन्तित्व और व्यापकता जब जाव स आर क अल्पज्ञान, अल्पबलसब गुण के , अल्प स्वरूप भ्रान्तित्व और पविच्छिन्नतादि त्रहा से भिन्न होने से जी और परमेश्वर एक नहीं क्योंकि इन का स्वरूप भी ( पर मेश्वर आति सूक्ष्म और जीब उस से कुछ स्थूल होने से ) भिन्न है ( प्रश्न ): आयोदरमत कुरुते। अथ तस्य भयं भवति द्वितीय।हैं- भय भगवति ॥ गह हास्यक का बचन है । जो ब्रह्म और जीव में थोड़ा भी भेद करत। है उसको भय प्राप्त होता है क्योंकि दूसरे ही से भय होता है ।' उत्तर ) इस का अर्थ यह नहीं है किन्तु जो जवि परमेश्वर का निषेध व किसी एक देश कान से परिच्छिन्न परमात्मा को सने वा उसकी आज्ञा और गुण कमें स्वभाव से विरुद्ध 81व अथवा किसी दूसर मनुष्य देर करे ड स का भय प्राप्त होता है क्यों कि वि 3 तीय बुद्धि अर्थात् ईश्वर से मुझ से कुछ सम्बन्ध नहीं तथा किसी मनुष्य कह । स 3 कि तु कों मैं कुछ नहीं समझता तू मेरा कुछ भी नहीं कर सकता वा किसी की हानि . ) हैं i करता चोर दु:ख देता जाय तो उसका उनस भय होता 1 ऑर व प्रकार का विरोध हो तो वे एक काते हैं जैसा संसार में कहते हैं कि देवदत्त यज्ञदत्त और विष्णुमित्र एक हैं आत् विरुद्ध हैं । विरोध न रहने से एक और विरोध से दुख प्राप्त होता है (प्रश्न) ह्म और जीव की सदा एकता आने कता रहती है वह कभी दोनों मिल के एक भी होते हैं वा नहीं उत्तर ) अभी इसके पूर्व कुछ १ ( उत्तर दे दिया है परन्तु माधर्य अन्वयभाव से एकता होती है जैसे आकाश से मृ। ? द्रव्य जत्म होने से और कभी पृथ न रहने से एकता और प्रकाश के विश सूक्ष्म अप अनन्त अदि गु' और मूते क परेच्छन्न व्यव आIt म् : २७