पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२०९

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समसमुदा: ! १९७ सेव ापन , पुत्र नहीं थापि सत्र की बात सुनता, अन्तःकरण नहीं परन्तु सतप आग सू ा जाता है ओर उस फ़ो अधिसहित ज।ननेवाला कोई भी नहीं खर्च का तन में से श्रेष्ठ समय में पूर्ण होने से पुरुष कहते हैं । वह इन्द्रियों और न्त , करण के बिना अपने सब काम अपने सामथ्र्य से करता है 1 (न) । इस यहूसे मनुष्य निष्क्रिय प्रौर निर्गुण कहते हैं ? ( उत्तर ) न तस्य कार्य कर च विद्यतें न तत्समाचाभ्यधिकश्व _ & । ' दृश्यत : परस्य शा विॉलंब अपने स्वाभाविकें। छानबल क्रिया च ॥ बताश्वर उप . नष अ० ६। सं० ८ ॥ पर गरमा से कोई तप राणे '>र उसको करण अर्थात् सधकतम दूसरा अपेक्षित नहीं न कोई उस के मुख्य र न अधिक है सवोत्तमश मशक्ति अर्थात् जिसमें अनन्तु ईन, 'न्त बल और नन्त किया है वह स्वाभाविक अथोत् सहज उडसम मुनी जाती है जो परमेश्वर निष्क्रिय होता तो जगन की उत्पत्ति स्थिति प्रलय न कर स ता इसलिये वह विधु तथापि चेतन होने से उस में क्रिया भी है।(प्रश्न) जब यह क्रिया करता होगा सत्र अन्तवाली क्रिया होती होगी वा अनन्त ? उतर: ? जितने देश काल में क्रि ा करनी उचित समझता है इतने ही देश काल में क्रिया करता है न अधिक न न्यून पोंकि वह विद्वान् है ' (रन) परमेश्वर सपना अन्त ' जानता है नहीं ? ( उ वर्ष ) परमारा पूर्ण ज्ञानी है क्योंकि ज्ञान उसको कहये | वा हैं कि जिससे इयों का स्थो जाना जाय अर्थात् जो पार्टी जिस प्रकार का हो उसको

इसी प्रकार जानने का नाम ज्ञान है, परमेश्वर आनन्त है तो अपने को अनन्त ही

जानता ज्ञान, उससे विरुद्ध अज्ञान अथात् अनन्त को सात और सान्त को अ. !

  • यथार्योदन ज्ञानमिति’ जि सका जैसा गुण कर्म !

नन्द जानना चैम कद्दावा ६ j स्वभावहो उस पदार्थ को वैसा ही ज।नकर सनना ही ज्ञान और विज्ञान का है इससे उलटा अज्ञान इसलिये:-- क्लेशकर्मविपकादंरपरामृष्ट: पुरुषविशेष ईश्वरः ॥ योग सू०। समाधिपादे सू० २४ | जो अविद्यादि क्लेश, कुशलअकुशल, इष्ट, अनिष्ट और मिश्र फलदायक कम की वासना से रहित है वह घब जीवों के विशेष ईश्वर कहाता है ( प्रश्न ).