पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१९७

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स।ि अथ सप्तमसपुलासारः ॥ था। । मैं एक बाइक को s s aरूआ कों की छड़ का $ $ $ sक कल से अर्थश्वरखेदविषय व्याख्यास्यामः ? ॥ अचो अक्षर परम ज्योन्यमि बेवा अधि विश्वें । निषेदुः। यस्तन्न व किमृचा करिष्यति य इत्तहृिदुस्त इमे समांसते ॥ १ ॥ यु० ॥ मं० १ । सू० १६४ । में ३६ ॥ ईशा वास्यमिद& सर्व यकिन्ध्र जगत्याcजगत् । तेने यूक्रेन भुजीथा मा गुंधः कस्बें स्मृिद्धनम् से २ ॥ यजु० ॥ ! ज० ४० । मं० १ ॥ । अहम्भु वसुन: पूच्र्यस्पतिर घना सजंयाiन शवंतः। मां वन्ते पितर न जन्तव50 दृशुछे विभेजाम भाजंन ॥ ३ ॥ ! अहमिन्ट्रो न पर। जिग्य इद्धन न मृत्यवेवतस्थे कदचन। सोममिन् सुन्वन्तों याचता वस्तु हु न में पूवः सल्ये रिखाथन ॥ ४ ॥ • ॥ ० १० I ४८। मै० १। ५ ॥ ( अत्वो आक्ष० ) इम्व मन्त्र का आधे ब्रह्मचर्याश्रम की शिक्षा में लिख चुके हैं। अथॉ जो सब दिन्य गुण कसे स्वभाव विधायुक्त और जिसमें प्रथब सूयदि रोक स्थित आकाश के व्यापक सब परमेर इमन हैं और जो ।समन देवों का देश जो मनुष्य न ध्यान नहीं करते वे नास्तिक मनि सदन ! जानते न मानते और उसका मन्द दुःखसागर में चे रहते जनर सब मनुष्य सुवी ही हैं इसलिये सर्वदा डती को होते हैं। प्रश्न ईश्वर या नहीं ( ) वेद में अनेक हैं इस बात तो तुम मानते हो ? ।