पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१७३

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के अनुसार अवश्य देखे 1 और जिसके बालक जबतक समर्थ हों और उनकी बी जीती हो तो उन सब के निर्धार्थ राज की ओर से यथायोग्य धन मिला करें परन्तु जो उसकी स्त्री वा लड़के कुकर्मी होजायें तो कुछ भी न मिले ऐसी नीति Tr बरबर रक्ख 1 १९ ? यथा प्लेन युज्येत राजा कॉं च कर्मणा । तथावदय नृपा राष्ट्र कल्पयरुसतत करान् 7 १ ॥ । ययल्पाSल्पमदन्याSS वायाकावत्सट्रपदः ? तथाSल्पाsल्पो ग्रहीतव्यो राष्ट्रद्राज्ञाब्दि कः करः ॥ २ ॥ नांछन्यादात्मना पूल परष चततृष्णया । उच्छन्दन्दात्मनों मूलमात्मान तश्ध पं।ड ॥ ३ ॥ तीक्ष्णश्व मृदुश्च स्यात्कार्य बीषय महीपति: । तीक्ष्णश्व मृदुश्चेव राजा भवति सस्मतः ॥ & ॥ एवं सर्व विधायेदमिति कर्त्तव्यमामनः । - ई युक्तश्वामित्तश्ध परिवाद: जाः 3 ५ । विक्रोशन्त्यो यस्य राष्ट्रानियन्ते दस्युभिः प्रजाः । सम्पश्यतः सभृत्यस्य मृतः स न तु जीवति ॥ ६ ॥

क्षत्रेियस्य परो धर्म प्रजानामेव पालन।

निर्दिष्टफ्लभोक्ता हि राजा धर्मण युज्यत ॥ ७ ॥ मनु० ७ ॥ १२८ । १२ में १३९ । १४० से १४२-१४४ ॥ हैं - जस कत्ता फल राजा और क का राजपुरुप ा प्रज।सुग्वरूप से युक्त व सस विचार करके रज तथा राजसभा राज्य में क९ स्थापन करे 11 २ ॥ जैसे जोक बछडा भंवरा थड़े २ ग्य पदार्थ को प्रण करते हैं में रोष प्रश्न और र्वे । से २ At के थोड़r वर्षि कर लेवे २ : अतिलोभ से अपने दूसरी सुरों के सेल ो छिन्न अर्थन नष्ट्र कदापि न करे क्योंकि जो व्यवहर ।र मुग्वे के नल अत i ।