पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१५३

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Autumaan-madamia-nan d lanita.supeacLNDIAkon- । अथ षष्ठसमुल्लासारम्भः॥ Rane MAN अथ राजधर्मान् व्याख्यास्यामः ॥ . राजधर्मान् प्रवक्ष्यामि यथावृत्तो भवेन्नृपः । संभवश्च यथा तस्य सिद्धिश्च परमा यथा ॥१॥ ब्रामं प्राप्तेन संस्कारं क्षत्रियेण यथाविधि । सर्वस्यास्य यथान्यायं कर्तव्यं परिरक्षणम् ॥२॥ मनु०७।१।२॥ अव मनुजी महाराज ऋषियों से कहते हैं कि चारों वर्ण और चारों आश्रमों के व्यवहार कथन के पश्चात् राजधर्मों को कहेंगे कि किस प्रकार का राजा होना चाहिये । और जैसे इसके होने का सम्भव तथा जैसे इसको परमसिद्धि प्राप्त होवे उसको सब प्रकार कहते हैं॥१॥ कि जैसा परम विद्वान् ब्राह्मण होता है वैसा विद्वान् । सुशिक्षित होकर क्षत्रिय को योग्य है कि इस सब राज्य की रक्षा न्याय से यथावत् करे उसका प्रकार यह है:- त्रीणि राजाना विदथे पुरूणि परि विश्वानि भूषथः सदांसि ॥ मृ०॥ मं० ३ । सू० ३८ । मं० ६ ॥ ईश्वर उपदेश करता है कि ( राजाना ) राजा और प्रजा के पुरुष मिल के (विदथे ) सुखप्राप्ति और विज्ञानवृद्धिकारक राजा प्रजा के सम्बन्धरूप व्यवहार में ( त्रीणि सदासि ) तीन सभा अर्थात् विद्यार्थ्यसभा, धर्मार्यसभा, राजार्यसभा नियत करके ( पुरूणि ) बहुत प्रकार के (विश्वानि ) समग्र प्रजासम्बन्धी मनुष्यादि प्राणियों को ( परिभूषथः ) सब ओर से विद्या स्वातन्त्र्य धर्म सुशिक्षा और धनादि | से अलंकृत करें।