पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१४९

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amanarrrrow पञ्चमसमुल्लासः ॥ लिखते और कहते है वैसे उपदेश करनेवाले ही मिथ्यारूप और पाप के बदानेहारे । पापी हैं । जो कुछ शरीरादि से कर्म किया जाता है वह सब आत्मा ही का और । उसके फल का भोगनेवाला भी आत्मा है । जो जीव को ब्रह्म बतलाते हैं वे अविद्या निद्रा में सोते हैं क्योंकि जीव अल्प अल्पज्ञ और ब्रह्म सर्वव्यापक सर्वज्ञ है मह नित्य, शुद्ध बुद्ध, मुक्त स्वभावयुक्त है और जीव कभी बद्ध कभी मुक्त रहता है। ब्रह्म को सर्वव्यापक सर्वज्ञ होने से भ्रम वा अविद्या कभी नहीं होसकती और जीव ! को कभी विद्या और कभी अविद्या होती है ब्रह्म जन्ममरण दुःख को कभी नहीं प्राप्त होता और जीव प्राप्त होता है इसलिये वह उनका उपदेश मिथ्या है ( प्रश्न )

संन्यासी सर्व कर्मविनाशी और अग्नि तथा धातु को स्पर्श नहीं करते यह बात

सभी है या नहीं ( उत्तर ) नहीं "सम्यड् नित्यमास्ते यस्मिन् यद्वा सम्यङ् न्यस्य- | ति दुःखानि कर्माणि येन स संन्यासः स प्रशस्तो विद्यते यस्य स संन्यासी" जो । ब्रह्म और जिससे दुष्ट कमों का त्याग किया जाय वह उत्तम स्वभाव जिसमें हो वह संन्यासी कहाता है इसमें सुकर्म का कर्ता और दुष्ट कर्मों का नाश करनेवाला संन्यासी कहाता है ( प्रश्न ) अध्यापन और उपदेश गृहस्थ किया करते हैं पुनः । संन्यासी का क्या प्रयोजन है ? ( उत्तर ) सत्योपदेश सब आश्रमी करें और सुनें । परन्तु जितना अवकाश और निष्पक्षपातता संन्यासी को होती है उतनी गृहस्थों को नहीं, हां जो ब्राह्मण हैं उनका यही काम है कि पुरुष पुरुषों को और स्त्री क्षियों को सत्योपदेश और पढ़ाया करें जितना भ्रमण का अवकाश संन्यासी को मिलता है । उतना गृहस्थ ब्राह्मणादिकों को कभी नहीं मिल सका जब ब्राह्मण वेदविरुद्ध आचरण | करें तव उनका नियन्ता संन्यासी होता है इसलिये सन्यास का होना उचित है (प्रश्न ) 'एकरात्रि वसेद् प्रामे" इत्यादि वचनों से संन्यासी को एकत्र एकरात्रिमान में रहना अधिक निवास न करना चाहिये ? ( उत्तर ) यह बात थोडेसे अंश में तो अच्छी है कि एकत्रवास करने से जगत् का उपकार अधिक नहीं हो सकता और E स्थानान्तर का भी अभिमान होता है राग द्वेप भी अधिक होता है परन्तु जो वि- शेष उपकार एकत्र रहने से होता हो तो रहे जैसे जनक राजा के यहां चार चार महीने तक पञ्चशिखादि और अन्य संन्यासी कितने ही वर्षों तक निवास करते थे। और "एकत्र न रहना" यह बात आजकल के पाखण्डी सम्प्रदायियों ने बनाई है। क्योंकि जो संन्यासी एकत्र अधिक रहेगा तो हमारा पाखण्ड खण्डित होकर अधिक न बढ़ सकेगा ( प्रश्न ):- .------- ------- ------- - --------------