पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१४८

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- - ar सत्यार्थप्रकाशः ।। गहाश्रम नहीं करेगा तो उमसे सन्तान ही न होंगे जब संन्यासाश्रम ही मुख्य है और सत्र मनुष्य करें तो मनुष्यों का मूलच्छेदन होजायगा ( उत्तर ) अच्छा, विवाह : करके भी बहुतों के सन्तान नहीं होते अथवा होकर शीघ्र नष्ट होजाते हैं फिर वह , भी ईश्वर के अभिप्राय से विरुद्ध करनेवाला हुआ जो तुम कहो कि "यने कृते । यदि न सिध्यति कोऽत्र दोप" यह किसी कवि का वचन है, अर्थ-जो यत्न करने से भी कार्य मिद्ध न हो तो इसमें क्या दोष ? अर्थात कोई भी नहीं। तो हम तुम से । पूछते हैं कि गृहाश्रम से बहुत सन्तान होकर आपस में विरुद्धाचरण कर लड़ मरें तो हानि कितनी बडी होती है, समझ के विरोध से लडाई बहुत होती है, जब सं- न्यासी एक वेदोक्तधर्म के उपदेश से परस्पर प्रीति उत्पन्न करावेगा तो लाखों मनु- घ्यों को बचा देगा सहस्रों गृहस्थ के समान मनुष्यों की बढ़ती करेगा और सब , मनुष्य संन्यासग्रहण कर ही नहीं सकते क्योंकि सब की विषयाशक्ति कभी नहीं छूट , सकेगी, जो २ सन्यासियों के उपदेश से धार्मिक मनुष्य होंगे वे सब जानो संन्या- मी के पुत्र तुल्य हैं ( प्रश्न) संन्यासी लोग कहते हैं कि हम को कुछ कर्त्तव्य नहीं अन्न वस्र लेकर आनन्द में रहना, अविद्यारूप संसार से माथापच्ची क्यों करना ? अपने को ब्रह्म मानकर सन्तुष्ट रहना, कोई कर पूछे तो उमको भी वैसा ही उपदेश करना कि नू भी ब्रह्म है तुझ को पाप पुण्य नहीं लगता क्योंकि शीतोष्ण शरीर का,' नधा तपा प्राण का और सुख दुख मन का धर्म है जात मिथ्या और जगत् के व्यवहार भी सव कल्पित अर्थान झूठे हैं इसलिये इसमें फँसना बुद्धिमानों का काम , नहीं । जो कुछ पाप पुण्य होता है वह देह और इन्द्रियों का धर्म है आत्मा का नहीं, इत्यादि उपदेश करते हैं और आपने कुछ विलक्षण संन्याम का धर्म कहा है श्रय हम किसकी बात सच्ची और किसकी झूठी मानें ? ( उत्तर ) क्ण उन- को अच्छे कर्म भी कर्तव्य नहीं ? देखो वैदिकैश्चैव कर्मभि." भनुजी ने वैदिक कर्म जो धर्मयुक्त सत्य कर्म हैं संन्यासियों को भी अवश्य करना लिखा है क्या भोजन छादनादि कर्म वे छोड सकेंगे ? जो ये कर्म नहीं छट सकते तो उत्तम कर्म छोड़ने से वे पतित और पापभागी नहीं होंगे ? जब गृहस्थों मे अन्न वस्त्रादि लेते हैं और उनका प्रत्यपकार नहीं करते तो क्या वे महापापी नहीं होंगे ? जैसे आंख से देखना फान से मुनना न हो तो 'प्रांख और कान का होना व्यर्थ है वैसे ही जो संन्यास। मत्योपदेश और दादि सत्यशास्त्रों का विचार, प्रचार नहीं करते तो वे भी जगत में व्ययभाररूप है। और जो अविद्यारूप संसार से माथापची क्यों करना आदि