पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१३३

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सत्यार्थप्रकाशः॥ संभोग करने से गन्धर्व जो ( तृतीय उत्तर ) दो के पश्चात् तीसरा पति होता है । वह ( अन्नि ) अत्युष्णतायुक्त होने से अग्निसंज्ञक और जो ( ते) तेरे (तुरीय ) । चौथे मे लेके ग्यारहवें तक नियोग से पति होते हैं वे ( मनुष्य जा' ) मनुष्य नाम । से कहाते हैं जैसा ( इमां त्वमिन्द्र ) इस मंत्र से ग्यारहवें पुरुष तक स्त्री नियोग कर सकती है वैसे पुरुष भी ग्यारहवीं स्त्री तक नियोग कर सकता है ( प्रश्न ) ! एकादश शब्द से ढा पुत्र और ग्यारहवें पति को क्यों न गिर्ने ? ( उत्तर ) जो ऐसा अर्थ करोगे तो "विधवेव देवरम्" "देवरः कस्माद् द्वितीयो वर उच्यते" "अदेवृघिन" और "गन्धर्वो त्रिविद उत्तर " इत्यादि वेदप्रमाणों से विरुद्धार्थ होगा क्योंकि तुम्हारे अर्थ से दूसरा भी पति प्राप्त नहीं होसकना । देवराद्वा सपिण्डाद्वा स्त्रिया सम्यङ् नियुक्तया। प्रजेप्सिताधिगन्तव्या सन्तानस्य परिक्षये ॥ १॥ ज्येष्ठो यवीयसो भार्या यवीयान्वाग्रजस्त्रियम् । पतितौ भवतो गत्वा नियुक्तावप्यनापदि ॥२॥ औरसः नेत्रजश्चैव ॥३॥ मनु० ॥ ५६ । ५८।१५।। इत्यादि मनुजी ने लिखा है कि { सपिण्ड ) अर्थात् पति की छः पीढियों में पनि का छोटा वा वडा भाई अथवा स्वजातीय तथा अपने से उत्तम जातिस्थ पुरुष मे विधवा स्त्री का नियोग होना चाहिये परन्तु जो वह मृतस्त्रीक पुरुष और विधवा ! म्त्री सन्तानोत्पत्ति की इच्छा करती हो तो नियोग होना उचित है और जब सन्तान का मर्वथा भय हो नव नियोग होवे । जो आपत्काल अर्थात् सन्तानों के होने की इच्छा न होने में बड़े भाई की स्त्री से छोटे का और छोटे की स्त्री से बडे भाई का नियोग होकर मन्तानोत्पत्ति होजाने पर भी पुनः वे नियुक्त आपस में समागम । करें तो पतित होजाय अर्थात् एक नियोग में दूसरे पुत्र के गर्भ रहने तक नियोग की अवधि है इसके पश्चात् नमागम न करें और जो दोनो के लिये नियोग हुआ। तो नो चीये गर्भ नक अर्थात् पूर्वोक्त रीति से दा सन्तान तक हो सकते हैं पश्चात् पिण्यामति गिनी जानी है इससे वे पतित गिने जाते हैं। और जो विवाहित खी पुरुप भी दाव गर्भ में अधिक ममागम करें नो कामी और निन्दिन होते हैं अधीन विद्या वा नियोग मन्तानों हो के अर्थ किये जाते हैं पशुवन् कामक्रीडा के लिये ना ( प्रश्न ) नियोग मरे पनि ही होता है. वा जीते पनि के भी ? (उत्तर) माना है --