पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१३२

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A MMA चतुर्थसमुल्लासः ॥ ११९ ' प्राप्त हो और ( उदीर्घ ) इस बात का विचार और निश्चय रख कि जो ( हस्त- । प्राभस्य दिधिषोः ) तुझ विधवा के पुनः पाणिग्रहण करनेवाले नियुक्त पति के

सम्बन्ध के लिये नियोग होगा तो ( इदम् ) यह ( जनित्वम् ) जना हुआ बालक

उसी नियुक्त ( पत्युः ) पति का होगा और जो तू अपने लिये नियोग करेगी तो यह सन्तान ( तव ) तेरा होगा । ऐसे निश्चय युक्त ( अभि, सम्, बभूथ । हो | और नियुक्त पुरुष भी इसी नियम का पालन करे ।। ___अदैवृघ्न्यपतिघ्नी हैधि शिवा पशुभ्यः सुयाः सुवर्चाः । प्रजावती वीरसःकामा स्योनेममग्नि गार्हपत्यं सपर्य ॥ अथव० ॥ कां० १४ । अनु० २ । मं० १८ ॥ हे ( अपविघ्न्यदेवृघ्नि ) पति और देवर को दुःख न देनेवाली स्त्री तू (इह। इस गृहाश्रम में ( पशुभ्यः ) पशुओं के लिये ( शिवा ) कल्याण करनेहारी (सुय- माः ) अच्छे प्रकार धर्म नियम में चलने ( सुवर्चाः) रूप और सर्व शास्त्र विद्या- युक्त ( प्रजावति ) उत्तम पुत्र पौत्रादि मे सहित ( वीरसूः ) शूरवीर पुत्रों को जनने ! ( देवृकामा ) देवर की कामना करनेवाली ( स्याना ) और सुख देने हारी पति | वा देवर को ( एधि ) प्राप्त होके ( इमम् । इस ( गार्हपत्यम् ) गृहस्थ सम्बन्धी । (अग्निम् ) अग्निहोत्र को (सपर्य) सेवन किया कर । । तामनेन विधानेन निजो विन्देत देवरः ॥ मनु० 8 1 ६९ ॥ । जो अक्षतयोनि स्त्री विधवा होजाय तो पति का निज छोटा भाई भी उससे विवाह कर सकता है ( प्रश्न ) एक स्त्री वा पुरुष कितने नियोग कर सकते हैं । और विवाहित नियुक्त पतियों का नाम क्या होता है ( उत्तर ):- सोमः प्रथमो विविदे गन्धर्वो विविद उत्तरः। तृतीयो अग्निष्टे पतिस्तुरीयस्ते मनुष्यजाः॥ ऋ० ॥ मं० १० । सू०८५ । मं० ४० ॥ हे स्त्रि ! जो ( ते । तेरा ( प्रथमः ) पहिला विवाहित ( पति. ) पति तुझ | को ( विविदे ) प्राप्त होता है उसका नाम ( सोम. ) सुकुमारनादि गुणयुक्त होने से सोम जो दूसरा नियोग से (विविदे) प्राप्त होता वह (गन्धर्वः ) एक स्त्री में