७६ सचित्र महाभारत [पहला खण्डे अत्याचार किया है । यह स्थान ही ऐसा विकट है कि इस पर कोई सहज में धावा नहीं कर सकता । आज हम जरासन्ध का घमण्ड चूर्ण करेंगे। इसके बाद तीनों वीरों ने नगर में जाकर देखा कि फाटक पर एक ऊँचा चबूतरा सा बना हुआ है, जिसे सब लोग पूज रहे हैं । उसी के निकट जीत कर मारे गये एक दानव के चमड़े की बनी हुई प्रचण्ड गर्जना करनेवाली तीन भेरियाँ रक्खी हैं। चबूतरे और भेरियों को तोड़-फोड़ कर कृष्ण, भीम और अर्जुन को लिये हुए, प्रसन्नतापूर्वक नगर से घुसे और राज-पथ से जरासन्ध के महल की ओर चलने लगे । रास्त में तरह तरह की खान की चीजों और फूल-मालाओं से शोभित दूकानें देख कर उन्होंने मालियां से जबरदस्ती तीन मालायें छीन कर अपने अपने कंठ में धारण कर ली। ___इधर मगध नगर में उस दिन तरह तरह के अशकुन हो रहे थे। पुरोहितों ने राजा को इस बात की खबर दी और ग्रहों की शान्ति के लिए उस हाथी पर चढ़ा कर अग्नि की प्रदक्षिणा करवाई। इसके बाद व्रत-उपवास करके जरासन्ध एक एकान्त कमरे में बैठे। इसी समय दानों पाण्डवों के साथ कृष्ण राजभवन में पहुँचे और कई कमरों और दालानों से होते हुए अन्त में मगधराज के पास उपस्थित हुए। मगधराज जरासन्ध उनको देखते ही खड़े हो गये और आगत ब्राह्मणों पर यथोचित भक्ति- भाव दिखाकर, जल, पूजा की सामग्री और मधुपर्क से उनका सत्कार किया। किन्तु उस पूजा को ग्रहण न करके भीम और अर्जुन तो चुप रहे, किन्तु कृष्ण बोल :- हे राजेन्द्र ! हमारे दोनों साथी इस समय व्रतस्थ हैं । आधी रात के पहले ये न बोलेंगे। इसलिए आधी रात बीत जाने पर आप फिर आकर इनके साथ बात-चीत कीजिएगा। जरासन्ध ने यह बात मान ली और तीनों स्नातकों को यज्ञशाला में रहने के लिए कह कर चले गये । आधी रात होने पर फिर वे उनके पास आये और यथाविधि उनकी पूजा की। किन्तु इस बार भी उन्होंने पूजा न ली। इस अद्भुत व्यवहार और उनकी अपूर्व वेशभूषा को देख कर मगधराज विस्मित हुए। वे कहने लगे :- हं विप्रगण ! आप लोग कौन हैं ? स्नातक ब्राह्मण तो सभा में जाने के समय छोड़ कर और कभी लाल कपड़े नहीं पहनते और चन्दन तथा माला नहीं धारण करते । आपके वस्त्र आदि तो ब्राह्मणों के से हैं। पर आपके बलिष्ठ शरीर और धनुप को प्रत्यञ्चा की रगड़ के चिह्नवाली भुजाओं से मालूम होता है कि आप क्षत्रिय है। मैंने सुना है कि नगर में घुसते समय आप चैत्य नामक चबूतरे का ऊपरी हिस्सा और तीन भरियाँ तोड़ फोड़ आये हैं। इसका क्या मतलब है ? हमारे यहाँ अतिथि के रूप में आकर हमारी दी हुई पूजा आप क्यों नहीं लेने ? इन सब गृढ़ बातां को खोल कर साफ साफ कहिए, क्या मामला है । तब कृष्ण बोले :- महाराज ! तुम हम लोगों को स्नातक ब्राह्मण क्या समझने हो ? ब्राह्मणों के सिवा क्षत्रिय और वैश्य भी जातक व्रत धारण करने के अधिकारी हैं। तुमने ठीक कहा है, बल ही से क्षत्रियों का परिचय मिलता है। इसलिए आज ही हमारे बाहुबल की आप परीक्षा कर सकते हैं। मित्र के घर प्रकाशभाव से और शत्र के घर गुप्तरूप से जाना चाहिए। इसलिए हे राजन् ! शत्र की दी हुई पूजा न लेने के नियम का पालन करते हुए हम गुप्त-वेश में आपके घर आये हैं। इस पर भी जरासन्ध की समझ में ठीक वात न आई । वे बोले :- हे स्नातक-ब्राह्मणगण ! हमें तो याद नहीं कि कभी हमने तुम्हारे साथ शत्रता की हो, या तुम्हारा कोई अपकार किया हो । मालूम होता है, तुम्हें भ्रम हो गया है। इसके उत्तर में कृष्ण ने कहा :--- हे नृपाधम ! तुम जब अपने ही वर्ण के गजों को पशु की तरह समझ कर बलिदान देने को
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