पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/९४

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सचित्र महाभारत [पहला खण्ड मन्त्री प्रशंसापूर्वक कहने लगे :- महाराज ! क्षत्रियों में जैसा बल होना चाहिए वैसा होने से राजसूय यज्ञ सहज ही में हो सकता है। इस समय सभी आपके अधीन हैं। इसलिए बिना किसी चिन्ता के आप इस यज्ञ को प्रारम्भ कर सकते हैं। भाइयों ने अपने अपने बल-वीर्य के द्वारा युधिष्ठिर को भारतवर्ष का सबसे बड़ा राजा बनाने में सहायता देना स्वीकार किया। यह देख कर कि सबने उनकी बात का समर्थन किया, युधिष्ठिर बड़े प्रसन्न हुए। परन्तु इतने पर भी उनका सन्देह अच्छी तरह दूर नहीं हुआ। अन्त में उन्होंने यह निश्चय किया कि राज-काज की बातों को सबसे अधिक समझनेवाले अद्भुत बुद्धिमान् कृष्ण से सलाह लिये बिना कोई काम करना अच्छा नहीं। इस इरादे से उन्होंने तेज़ चलनेवाले रथ पर एक दूत द्वारका भेजा। युधिष्ठिर हमसे मिलना चाहते हैं, यह बात मालूम होते ही कृष्ण आये हुए रथ पर तुरन्त बैठ गये और खाण्डवप्रस्थ पहुँच कर बुलाने का कारण पूछा। युधिष्ठिर बोले :-हे कृष्ण ! हम राजसूय यज्ञ करने के लिए बड़े उत्सुक हैं। किन्तु तुम्हारी सलाह लिये बिना हम कुछ नहीं कर सकते । यहाँ कोई ता बन्धुत्व के कारण हमारी इच्छा के विरुद्ध कुछ नहीं कहना चाहता। कोई स्वार्थ के वश होकर खुशामद के मारे हमारी सब बातों का समर्थन करता है । हे बुद्धिमान् ! हम अकेले तुम्हीं से यथार्थ उपदेश पाने की आशा रखते हैं। इसके उत्तर में कृष्ण ने कहा :- महाराज ! आप बड़े गुणवान हैं। कौन बातें ऐसी हैं जो आपमें नहीं ? इसलिए आप इस यज्ञ को हर तरह से कर सकते हैं। पूर्वकाल में कोई राजा प्रजा-पालन से, कोई धन के बल से, कोई भुजाओं के बल से, कोई तपस्या के बल से साम्राज्य प्राप्त करके सारे भारत के राजा होते थे, अर्थात् वे सम्राट् बनते थे। उन्हें सारे माण्डलिक राजे सिर झुकाते थे। किन्तु तुममें ये सब गुण इकट्ठ देग्वे जाते है । पर इच्छानुसार साम्राज्य पाने में इस समय एक बाधा है। पहले उसे दूर करना ज़रूरी है। परम प्रतापी मगध के राजा जरासन्ध के भयानक प्रभाव से आस-पास के सब राजे डरते हैं। जो भाग नहीं गये वे सब जरासन्ध के अधीन हुए हैं। हे धर्मराज ! तुम्हें तो मालूम ही है कि कुछ दिन पहले जब हमारे मामा दानवराज कंस ने यादवों पर घोर अत्याचार करना प्रारम्भ किया था तब हमने सबका उद्धार करने के लिए उसे मारा था। कंस को जरासन्ध ने अपनी कन्या दी थी। इसलिए उस समय से वह दुरात्मा हम पर अत्यन्त क्रुद्ध है। तुम्हारे मामा वसुदेव को उसकी अधीनता स्वीकार करनी पड़ी है। उसी के कारण बाक़ी यादवों के साथ हम लोगों को मथुरा से भागकर द्वारका में रहना पड़ता है। कभी कभी उसकी दुष्टता से द्वारका भी छोड़ कर रैवतक पर्वत पर कुसस्थली नामक सुरक्षित किले में हम लोगों को आश्रय लेना पड़ता है। महाबली शिशुपाल, जरासन्ध से हार कर, उसका सेनापति हुश्रा है। तुम्हारे पिता के मित्र, यवननरेश भगदत्त, उसे कर देने के लिए लाचार हुए हैं। इससे भी सन्तुष्ट न होकर बल के घमण्ड से चूर मगधराज ने बहुत से राजों को जीत कर और उन्हें अपने राज्य में लाकर महादेव के मन्दिर में बलि चढ़ाने के इरादे से उनको कैद कर रक्खा है । हे युधिष्ठिर ! तुम्हारे सिवा कम शक्तिवाले किसी राजा में यह ताब नहीं कि इस नीच राजा के घमण्ड को चूर्ण करे । बिना उसे मारे सम्राट होने की आशा करना तुम्हारे लिए व्यर्थ है। मगधनरेश के प्रचण्ड पराक्रम की बात सुनकर युधिष्ठिर अधीर हो उठे । उन्होंने कहा :- हे कृष्ण ! अच्छा हुआ जो हमने तुमसे सलाह ली। अब तक किसी ने हमको जरासन्ध