पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/८१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

पहला खण्ड पाण्डवों का विवाह और राज्य की प्राप्ति बड़े सौभाग्य की बात है ! विदुर ! तुमने बड़ी अच्छी खबर सुनाई। पुत्र दुर्योधन से कहा कि वह द्रौपदी को सजा कर मेरे पास ले आवे । तब विदुर ने खोल कर कहा : महाराज ! हम दुर्योधन की बात नहीं कहतं । पाण्डव लोग सौभाग्य से लाक्षागृह में जलने से बच गये हैं। उन्हीं को दौपदी ने वर-माला पहनाई है। वे इस समय पाञ्चाल नगर में राजा द्रपद और अन्य भाई बन्धुओं के आश्रय में रह कर सुख से समय व्यतीत कर रहे हैं। तब धृतराष्ट्र ने कहा :-- अच्छा ही हुआ । पाण्डु के पुत्रों से हम हमेशा अपने लड़कों से भी अधिक स्नेह करते रहे हैं। यह सुन कर कि अब उनको राजा द्रुपद की सहायता मिली है हम बड़े प्रमन्न हुए । विदुर बाल :-महाराज ! ईश्वर करे आपकी समझ मना ऐसा ही बनी रहे । इसी समय दुर्योधन और कर्ण श्राकर बोल :--- पिता ! हमको आपस कुछ कहना है। उसका हम सबके सामने नहीं कह सकतं । इसलिए एकान्त में चल कर हमारी बात सुनिए । इस बात को सुन कर विदुर चले गये । तब उन्होंने कहा : महाराज ! आपकी यह कैसी समझ है कि अपने शत्रुओं की बढ़ती का आप अपनी बढ़ती समझते हैं और विदुर के साथ शत्रुओं की प्रशंसा करते हुए अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं। शत्रुओं की शक्ति तोड़न के सम्बन्ध में विचार करने का अब सबसे अच्छा समय है। इसलिए अब देर न करके जो कुछ करना हो उसका निश्चय कर डालिए। धृतराष्ट्र बोले :-पुत्र ! तुम जो अच्छा समझा हम वही करने को तैयार हैं। विदुर से जी की बातें साफ़ साफ़ नहीं कह सकते । इसी लिए हमने उनसे पाण्डवों की प्रशंसा की थी। इस समय, हे पुत्र ! हे कणे ! तुम क्या कहना चाहते हो कहा। दुर्योधन ने कहा :-ह पिता ! हम समझते हैं कि कुछ चतुर ब्राह्मणों को भेज कर कुन्ती और माद्री के पुत्रों में द्रौपदी के लिए परस्पर झगड़ा पैदा किया जा सकता है; अथवा बहुत सा धन देकर द्रुपद और धृष्टद्युम्न वश में किये जा सकते हैं; अथवा रूप बदला कर कुछ आदमियों के द्वारा भीमसेन एकान्त में मार डाले जा सकते है; अथवा यहाँ बुला कर वे लोग किसी तरह चतुराई से सबके सब यम-लोक भेज दिये जा सकते हैं । इन सब उपायों में आप जिसको मब से अच्छा समझिए कीजिए। कर्ण ने कहा :-हे दुर्योधन ! हमारी समझ में तुम्हारी एक भी सलाह ठीक नहीं। चालाकी से पाण्डवों के नाश की चेष्टा करना व्यर्थ है। पहले तुम कई बार ऐसा कर चुके हो पर कभी सफलता नहीं हुई। एक ही पत्नी में सब पाण्डवों की प्रीति एक सी होने के कारण उनका परस्पर स्नेह और भी अधिक मजबूत हो गया है । इससे उनमें परस्पर वैमनस्य नहीं पैदा किया जा सकता। पाञ्चाल लोग धर्मात्मा और विश्वासपात्र हैं, लोभी नहीं । अनन्त धन-राशि देने पर भी वे पाण्डवों को न छोड़ेंगे। इसलिए हे महाराज ! हमारी सलाह है कि जड़ पकड़ने के पहले ही पाण्डव लोग सामने की लड़ाई में नाश कर दिये जायँ । वीरता ही से हम लोग उन्हें जीत सकते हैं । जयलाभ करने का इससे अच्छा उपाय और कोई नहीं है। धृतराष्ट्र ने कर्ण की बात का श्रादर करके कहा :-- हे महाबुद्धिमान् कर्ण ! जैसे तुम वीर हो वैसा ही वीरों के समान तुम्हारा उपदेश भी है। किन्तु भीष्म, द्रोण आदि से सलाह किये बिना ऐसे बड़े काम के विषय में किसी तरह का निश्चय करना ठीक नहीं।