पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/८०

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सचित्र महाभारत [पहला खण्ड अधर्म होती है वही दूसरे समय, दूसरी जगह, दूसरी हालत में धर्म हो सकती है। फिर यह कहानी सुनाकर उनका सन्देह दूर किया : किसी तपोवन में एक बड़ी ही सुन्दर ऋषिकन्या रहती थी। विवाह के योग्य उम्र होने पर उसने अच्छा पति पाने की इच्छा से महादेव की बड़ी तपस्या की। इससे महादेव जी प्रसन्न हुए। जब उनकी इच्छा वर देने की हुई तब वह कन्या बार बार कहने लगी : हे भगवन् ! मैं चाहती हूँ कि मुझे ऐसा पति मिले कि जिसमें सब गुण हो-जो महागुणी हो । महादेव जी बोल :-हं पुत्री ! तुमने पाँच दफ़ पति मांगा है । इसलिए अगले जन्म में तुमको पाँच पति मिलेंगे। महाराज ! ऋषि की वही सुन्दर कन्या आपके यहाँ पैदा हुई है। द्रौपदी अपने ही कम्मों के फल से पाँच पाण्डवों की स्त्री होगी। इसलिए तुम इस बात को अधर्म समझ कर दुखी मत हो। व्यासदेव की इन बातों से द्रुपद को धीरज आया । उन्होंने कहा : हे महर्षि ! पहले हमें यथार्थ बात अन्छी तरह मालूम न थी। इसी लिए हमने सन्देह किया था। अब आपसे सब हाल जान कर इम विवाह के कग्न में हमको कोई पसोपेश नहीं रहा। इसके बाद सभा में आकर राजा द्रुपद ने सबके सामने कहा :पाण्डव लोग विधिपूर्वक द्रौपदी का विवाह करें। हमारी कन्या उन्हीं के लिए पैदा हुई है। ध्यासदेव ने युधिष्ठिर से कहा :-- श्राज चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में जायगा । इसलिए आज ही पहले तुम द्रौपदी के साथ विवाह करो। इसके बाद द्रौपदी अच्छे अच्छे गहनों और वस्त्रों से सजा कर बहुत सी कन्याओं के साथ सभा में लाई गई । मन्त्री लोग, इष्ट-मित्र, पुरवासी और ब्राह्मण लोग विवाह देखने के लिए मुंड के झुंड आने लगे। धीरे धीरे राजभवन में बड़ी भीड़ हो गई । पाण्डवों ने स्नान करके विवाह के पहले की माङ्गलिक क्रिया समाप्त की; फिर अच्छे अच्छे कपड़े पहन कर विवाह-मण्डप में आये। वेद जाननेवाले पुरोहित ने अग्नि की स्थापना की और विवाह के मन्त्र पढ़ पढ़ कर पहले युधिष्ठिर के साथ द्रौपदी का विवाह किया। इसके बाद युधिष्ठिर को अलग बैठाल कर उसी तरह एक एक करके सब पाण्डवों की विवाह-क्रिया समाप्त की। विवाह हो जाने पर राजा द्रुपद ने अपने दामादों को बहुत सा धन, बड़े बड़े हाथी, अच्छे अच्छे कपड़ों और गहनों से सजी हुई दासियाँ और चार घोड़ोंवाल सुनहले रथ दिये । अपने यहाँ आये हुए पाहुनों को भी धन और बड़े मोल की वस्तु आदि देकर बिदा किया। ___ पाण्डव लोग उस देवदुर्लभ स्त्री-रत्न को पाकर बड़े आनन्द से पाञ्चालराज्य में रहने लगे। पाञ्चाल और पाण्डव लोग एक दूसरे की सहायता पाकर अपने अपने वैरियों से निडर हो गये । पुरवासी लोग हमेशा कुन्ती का नाम लेकर चरण-वन्दना करने लगे। इधर दूत के द्वारा हस्तिनापुर में खबर पहुंची कि पाण्डव लोग जीते हैं और द्रौपदी के साथ विवाह करके पाञ्चाल राज्य में रहते हैं । विदुर, यह जान कर कि कौरव लोग लज्जित होकर लौटे हैं और पाण्डवों ही ने द्रौपदी पाई है, बड़े प्रसन्न हुए। वे धृतराष्ट्र के पास जाकर कुछ ताने से बोले : महाराज ! भाग्य के बल से द्रौपदी के स्वयंवर में कौरव लोग विजयी हुए हैं । ( पाण्डव भी तो कुरु ही के वंश के थे। इससे वे भी कौरव कहलाते थे)। धृतराष्ट्र इस बात के गूढ़ अर्थ को न समझे । उन्होंने जाना कि दुर्योधन ही ने द्रौपदी को पाया है। इससे आनन्द से प्रफुल्लित होकर बोले :