पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/७८

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सचित्र महाभारत [ पहला खण्ड महात्मा पाण्डु राजा द्रुपद के प्यारे मित्र थे। इसलिए उनकी बहुत दिनों से इच्छा थी कि द्रोपदी का विवाह अर्जुन से हो। तब पुरोहित के लिए जल और पूजा की सामग्री लाने की आज्ञा भीम को देकर युधिष्ठिर बोले : पाञ्चाल-नरेश का मनोरथ सिद्ध हुआ है । अर्जुन ही ने उनकी पुत्री को जीता है । ___ इस तरह बातचीत हो ही रही थी कि द्रुपद का भेजा हुआ एक दूत उत्तम घोड़ों से जुते हुए राजसी ठाट बाट के दो रथ और तरह तरह की अच्छी अच्छी खाने की चीजें लेकर आया और कहने लगा : महागज द्रुपद ने द्रौपदी के विवाह के लिए आप लोगों को महल में आदर के साथ बुलाया है । इसलिए देर न कीजिए। यह बात सुनकर उन्होंने पहले पुरोहित को बिदा किया। फिर द्रौपदी और कुन्ती को एक रथ में बिठा कर आप दूसरे रथ में सवार हुए और महलों की तरफ़ चले। पुरोहित से यह जान कर कि वे सचमुच पाण्डव हैं द्रुपद ने उनके आदर-सत्कार का यथोचित प्रबन्ध कर रक्खा था। उनके आते ही उन्होंने गायें, गायों के बाँधने के लिए रस्सियाँ, खंती के लिए तरह तरह के बीज, कारीगरी और खेलने के काम की बहुत तरह की चीजें, घोड़े, रथ, धनुष, बाण, तलवार आदि लड़ाई के सामान, और रत्न जड़े हुये पलँग, उत्तमोत्तम कपड़े-लत्ते और आभूषण, तथा फल दि कितनी ही चीजें उनको भेंट की। पर पाण्डव ने और चीजें नहीं ली: सिर्फ लड़ाई का सामान ले लिया। यह देख कर सब लोगों को बड़ी खुशी हुई। पुरुषों में श्रेष्ठ पाण्डवों को मृगचर्म धारण किये हुए देख कर राजा, राजकुमार, मन्त्री, मित्र लोग और नौकर-चाकर सब बड़े खुश हुए । कुन्ती द्रौपदी के साथ घर के भीतर गई। वहाँ स्त्रियों ने उनका खूब सत्कार किया। - इसके बाद पाण्डव लोग घर के भीतर गये और बहुमूल्य आसनों पर सङ्कोच छोड़ कर जा बैठे। सुन्दर सुन्दर कपड़े पहने हुए दास-दासियों और भोजन बनानेवालों ने उनके सामने तरह तरह के स्वादिष्ट भोजन परोस कर उनको तृप्त किया। भोजन करने के बाद युधिष्ठिर ने राज्य से निकाल दिये जाने पर वारणावत् जाने, वहाँ जिस घर में रहते थे उसके जलाये जाने और अपने घूमने घामने का सब हाल शुरू से आखिर तक कह सुनाया। पाञ्चाल लोगों ने धृतराष्ट के पत्रों को बार बार धिक्कारा और पाण्डवों को उनके बाप-दादे का राज्य फिरवाने के लिए. सहायता देना अङ्गीकार किया। इसके बाद कुन्ती और द्रौपदी को घर के भीतर से लाकर द्रुपद ने सबके सामने युधिष्ठिर से कहा :-आज शुभ दिन है । इसलिए आज अर्जुन का विवाह द्रौपदी के साथ हो जाना चाहिए। युधिष्ठिर बोले :-राजन् ! हम जेठे हैं; हमारा विवाह हुए बिना अर्जुन का विवाह कैसे हो सकता है ? द्रुपद ने उत्तर दिया :----तब तुम्ही हमारी कन्या के साथ विवाह करो; या और कोई कन्या यदि तुम्हें पसन्द हो तो बतलाओ। तब युधिष्ठिर कहने लगे : महाराज ! हमारा या भीमसेन आदि किसी का विवाह अभी तक नहीं हुआ। यह सच है कि अर्जुन ने आपकी कन्या को जीता है; किन्तु हम सब भाई एक दूसरे को इतना चाहते हैं कि यदि कोई किसी अच्छी चीज़ को पाता है तो हम सब मिल कर उसे भोग करते हैं। माता ने भी हम लोगों को इकट्रे ही द्रौपदी के साथ विवाह करने की आज्ञा दी है। इसलिए अपने इस पुराने नियम को हम लोग इस विषय में भी नहीं तोड़ सकते। आपकी कन्या धर्म से हमारी सबकी स्त्री होगी। इसलिए अग्नि को साक्षी बना कर हम सबके साथ अपनी कन्या का विवाह कीजिए।