पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/६८

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सचित्र महाभारत [पहला सरह ___ भीम के साथ रहने के समय हिडिम्बा के एक महा बलवान् और महा विकट रूपवाला पुत्र हुश्रा । उसका नाम घटोत्कच पड़ा । आगे चल कर घटोत्कच ने पाण्डवों पर बड़ी श्रद्वा-भक्ति दिखाई । उन पर उसने बड़ा अनुराग प्रकट किया। पाण्डवों ने भी उसके साथ स्नेह और वात्सल्य का व्यवहार किया। ___ इसके अनन्तर वृक्षों और मृगों के छाल के कपड़े पहने हुए मत्स्य, त्रिगर्त, पाञ्चाल, की चक श्रादि देशों के वनों को पार करते हुए पाण्डव लोग आगे बढ़े। चलते चलते एक दिन पितामह व्यासदेव से अचानक उनकी भेंट हो गई । कौरववंशी अपने पौत्रों की दुर्दशा देख व्यासजी को बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने उनको बहुत कुछ धीरज दिया और पास की एक चक्रा नामक नगरी में उन्हें ले गये । वहाँ एक ब्राह्मण के घर में उन्हें रख कर व्यासदेव युधिष्ठिर से बोले : तुम सब लोग यहाँ आनन्द से कुछ दिन रहो । यहाँ किसी तरह का डर नहीं। मैं फिर तुमसे मिलने आऊँगा। ___ यह कह कर व्यासदेव वहाँ से चले गये। पाण्डव एकचक्रा नगरी में रहने लगे। वहाँ अपने गुणों से वे सबके प्यार हो गये। दिन भर पाँचों भाई भीख माँगते फिरते और जो कुछ पाते शाम को माता के पास ले आते। माता उसके दो भाग करती । एक तो भीमसेन को देती, बाक़ी को निज-सहित चारों पुत्रों को बाँट देती। एक बार ऐसा संयोग आ पड़ा कि युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव तो भिक्षा के लिए बाहर गये; भीमसेन माता के पास घर पर रह गये। माता-पुत्र दोनों उस ब्राह्मण के घर में बैठे थे कि अचानक भीतर से रोने की आवाज़ आई। गेना बहुत ही कारुणिक था; दुःख-दर्द से भरा हुआ था। उसे सुन कर कुन्ती को बड़ी दया लगी। उन्होंने भीम से कहा : हे पुत्र ! हम लोग इस ब्राह्मण के घर में बड़े सुख से रहती हैं। इससे इसका दुःख दूर करने की हमें चेष्टा करनी चाहिए। भीम ने कहा-माँ ! तुम भीतर जाकर ब्राह्मण के दुःख का कारण जान आओ। यदि हम उसका कुछ भी उपकार कर सकेंगे, फिर चाहे कितना ही कठिन काम क्यों न हो, यथाशक्ति हम उसे ज़रूर करेंगे। इतने में फिर घर के भीतर से जोर जोर से रोने की आवाज़ आई। उसे सुन कर कुन्ती दौड़ी हुई भीतर गई। उन्होंने देखा कि स्त्री, पुत्र और कन्या को लिय हुए ब्राह्मण बैठा है और सिर झुकाये विलाप कर रहा है :-- हाय ! मैं बड़ा अभागी हूँ ! अब मैंने जाना कि संसार में कुछ भी सुख नहीं है, सब दुख ही दुख है । हे प्रिये ! मैंने बार बार तुमसे कहा कि आयो यहाँ से भग चलें, परन्तु तुमने मेरी बात न मानी। तुमने कहा कि यह हमारा पैतृक घर है, इसे न छोड़ना चाहिए । हाय हाय ! तुम बड़ी हठी हो। तुम्हारे पिता और बन्धु-बान्धवों को स्वर्ग गये तो बहुत दिन हुए। तब यह सब दुःख उठाने और कष्ट सहने की क्या ज़रूरत थी ? बन्धु-बान्धवों को छोड़ने के डर से तुमने मेरी बात न मानी। इस समय हम पर जो यह आपदा आई है उससे अब कैसे निस्तार हो ? पुत्र के बिना मैं जीता न रह सकूँगा। कोई कोई पुत्र की अपेक्षा कन्या का अधिक प्यार करते हैं। परन्तु मेरे लिए दोनों समान हैं-जैसे मुझे पुत्र प्यारा है वैसे ही कन्या भी प्यारी है। इससे कन्या को छोड़ कर भी मैं प्राण नहीं रख सकता। यदि मैं ही जाऊँ, तो तुम सब लोग जीत न रहोगे । सब तरफ़ से संकट है । हे भगवन् ! क्या करें कुछ समझ में नहीं आता। ब्राह्मणी ने ब्राह्मण को धीरज देते हुए कहा : श्राप तो पण्डित हैं, समझदार हैं । फिर सामान्य आदमियों की तरह क्यों विलाप कर रहे हैं ? ऐसी बातों के लिए अज्ञानी ही सोच करते हैं। संसार में जन्म लेकर एक न एक दिन जरूर ही मरना