पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/६२

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१२ सचित्र महाभारत [पहला खण्ड को हमें उसी के भीतर छिप कर रहना चाहिए। ऐसा करने से इस घर के जला दिये जाने पर भी भाग से जलने का हमें कोई डर न रहेगा। इसी समय विदुर का भेजा हुआ एक विश्वास-पात्र मनुष्य युधिष्ठिर के पास आया। उसने पाण्डवों को एकान्त में ले जाकर कहा : हे महात्माओ ! हम बेलदार हैं। आपके परम हित-चिन्तक चचा विदुर ने हमें भेजा है। उन्होंने सुना है कि दुर्योधन की आज्ञा से पुरोचन किसी कृष्णपक्ष की चतुर्दशी की रात को इस घर में आग लगा देगा। जिसमें आप मुझ पर विश्वास करें इमलिए, विदुरजी ने मुझसे उम उपदेश की बात आपसे कहने की आज्ञा दी है जो उन्होंने बिदा हाते ग्नमय म्लेच्छ-भापा में आपको दिया था। कहिए अब मेरे लिए क्या आज्ञा है। युधिष्ठिर ने कहा-जब तुम्हें हमारे परम हित-चिन्तक चचा ने भेजा है तब तुमको भी हम अपना मित्र और आत्मीय समझते हैं । इस लाक्षागृह के चारों तरफ़ अस्त्र-शस्त्र रक्खे हैं । और, सिलहखाने में, जहाँ सब हथियार रहते हैं, पुरोचन खुद ही दिन-गत रहता है। एक क्षण के लिए भी वह बाहर नहीं जाता। इससे यदि हम आग से बच कर भागें नो अस्त्रों से बच कर नहीं भाग सकते । इन सब बातों को सोच कर तुम हमारे बचाव का कोई उपाय निकालो। उस बेलदार ने खूब देख-भाल कर खाई खादने के बहाने एक गहरा गढ़ा उस घर में खोदा। उम गढ़े से बाहर निकलने के योग्य, सुरङ्ग के रूप में, उसने एक रास्ता बनाया। गढ़े के मुंह को उसने एक अदभुत प्रकार के किवाड़ों से बन्द कर दिया, जिसमें यदि कोई बाहरी आदमी घर में आवे तो वह इस गढ़ को न देख सके। पुरोचन को धोखा देने के लिए पाण्डव लोग दिन भर ख़ब इधर-उधर शिकार खलने लगे। उन्होंने पुरोचन को यह भामित किया कि हमें इस घर में रहने में किसी तरह का सन्देह या ग्वटका नहीं। गत को वे उसी गढ़े के भीतर बड़ी सावधानी म माने लगे। इस तरह एक वर्ष बीत गया । पुराचन ने समझा, पाण्डव लोग अब मेरा सब तरह विश्वास करते हैं। इस कारण अपने पाप-कर्म की सिद्धि में उसे कोई शङ्का न रही । उसे पूरी आशा हुई कि पाण्डवों का मैं इस घर में जरूर जला दूंगा। इससे वह आनन्द से फूल उठा। उसे प्रसन्न देख युधिष्ठिर ने अपने भाइयों से कहा : मालूम होता है कि इस बार हम लोग पुरोचन को अच्छी तरह धोखा देने में समर्थ हुए हैं । वह दुरात्मा मन ही मन खुश हो रहा है कि हम लोगों को उसके कपट-जाल का कुछ भी ज्ञान नहीं है। भाग निकलने का हमारे लिए यही अवसर है। पुरोचन के द्वारा इस घर में आग लगाये जाने की राह देखते बैठना अब व्यर्थ है। आओ हमी शस्त्रागार में, जहाँ वह रहता है, आग लगा कर उसे भस्म कर दें। फिर इस लाक्षागृह में आग लगा कर सुरङ्ग के रास्ते, बिना किसी को मालूम हुए, बाहर निकल चलें। जिस रात को यह सब काम करने का निश्चय हुआ उसी दिन कुन्ती ने पुरवासियों को एक बहुत बड़ा भोज दिया। सबको नाना प्रकार के भोजन कराये गये। उसी समय मानां युधिष्ठिर को सहायता देने ही के लिए, वहाँ पर केवट जाति की एक स्त्री आ गई। उसके साथ उसके पाँच पुत्र भी थे। उन लोगों ने गले तक खाया पिया । इससे अचेत होकर वे सब वहीं पड़ रहे। धीरे धीरे दिन का अन्त हुआ। रात आई । विकट अन्धकार छा गया। पाण्डवों ने देखा कि सब लोग घोर नींद में सो रहे हैं। किसी को किसी की खबर नहीं है। इससे उन्होंने भागने की तुरन्त तैयारी की । भीम चुपचाप उठे और जिस शस्त्रागार में पुरोचन सोया था उसमें जाकर पहले आग लगा दी। 'फिर लक्षागृह के दरवाजे पर आग लगाई। अन्त में चारों तरफ़ दीवारों में भी आग दे दी । यह सब करके किसी तरह सब पाण्डव सुरङ्ग की राह से निर्जन वन में बाहर निकल गये। किस तरह और कहाँ कहाँ आग लगानी चाहिए, इसकी सलाह पहले ही से हो गई थी। उसी के अनुसार भीमसेन ने सब काम