पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/५३

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पहला खण्ड ] पाण्डवों और धृतराष्ट्र के पुत्रों का बालपन भी हो, जब तक मैं सब लोगों के सामने तुम्हारा सिर धड़ से जुदा नहीं करता तब तक मैं व्यर्थ बातें करना नहीं चाहता। इसके अनन्तर द्रोण की आज्ञा लेकर और अपने भाइयों के द्वारा उत्साहित होकर अर्जुन युद्ध के लिए कर्ण के सामने आये। उधर कर्ण को भी दुर्योधन आदि ने गले से लगाया और अर्जुन से युद्ध करने के लिए उत्साहित किया। कर्ण झटपट अर्जुन के सामने खड़े हो गये। तब सभा में जितने लोग थे मन ही मन दो दलों में बँट गये । द्रोण, कृप और चारों पाण्डव अर्जुन के पक्ष में हुए, और धृतराष्ट्र के सौ लड़के तथा अश्वत्थामा कर्ण के पक्ष में। कुन्ती ने देखा, मेरे दो पुत्र बड़ा ही भयङ्कर युद्ध करने पर उतारू हैं। न मालूम इसका क्या फल हो । ऐसे अवसर पर क्या करना चाहिए, वह कुछ भी निश्चय न कर सकी । उसे बे-तरह दुःख हुआ। मारे दु:ख के वह अचेत होकर गिर पड़ी। कृपाचार्य बड़े समझदार थे। उन्होंने सोचा कि महा अनर्थ होना चाहता है। इससे उन्होंने अर्जुन और कर्ण को युद्ध से रोकना चाहा । वे कर्ण से कहने लगे : हे वसुसेन ! जिसके कुल और शील का कुछ भी ज्ञान नहीं उसके साथ राजकुमारों को युद्ध करना मना है। अनजान आदमी से गजकुमार नहीं लड़ते---इस तरह के आदमी से लड़ने का नियम ही नहीं है । सब लोग यही जानते हैं कि एक सारथि ने तुम्हाग पालन किया है। फिर सारथि के पुत्र के साथ गजकुमार किस तरह युद्ध कर सकते है ? इससे, हे महाबाहु ! यदि तुम अपने माता-पिता का नाम बतला कर यह सूचित करो कि किम गजवंश में तुम्हारा जन्म हुआ है तो पाण्डु-पुत्र अर्जुन नि:सङ्कोच होकर तुम्हारे साथ युद्ध करेंगे । फिर कोई वाधा न रह जायगी। कृपाचार्य की यह युक्ति-पूर्ण बात सुन कर कर्ण को बड़ी लज्जा मालूम हुई। उन्हें अपने कुल-शील आदि का ज्ञान तो था ही नहीं, बतलान क्या ? सिर झुका कर चुप हो रहे । पर दुर्योधन से यह बात न सही गई । कार्ग एक प्रकार से दुर्योधन की शरण में थे । फिर भला शरणागत का अपमान वे कैसे सह सकतं ? दुर्योधन ने कहा : ह प्राचार्य ! हमारी समझ में तो वीर के साथ कोई भी वीर युद्ध करने का अधिकारी हो मकता है । जाति-पाँति का विचार व्यर्थ है। कुछ भी हो, यदि राजा के सिवा और किमी के साथ अर्जुन नहीं युद्ध करना चाहतं, तो हम इसी क्षण वसुसेन को अङ्गदेश का राजा बनाते हैं। यह कह कर दुर्योधन ने तत्काल एक सोने का सिंहासन मँगा कर उस पर कर्ण को बिठाया, और विद्वान ब्राह्मणों को बला कर मन्त्रपाठ-पूर्वक सिंहासन पर बिठाने की सारी मङ्गल-क्रिया कराई। इस प्रकार दुर्योधन की कृपा से वसुसेन शास्त्र की रीति से अङ्गदेश के राजा हो गये। ____ कर्ण का जो दारुण अपमान हो रहा था उससे दुर्योधन ने कर्ण की रक्षा की। कर्ण की मानमादा दुर्योधन की कृपा से रह गई। इससे कर्ण ने दुर्योधन का बड़ा निहोरा माना। दुर्योधन के कर्ण बहुत ही कृतज्ञ हुए। उन्होंने दुर्योधन से कहा : महाराज ! आपने हमें राजा बना दिया । इस उपकार का बदला देना हमारे लिए असाध्य है। तथापि अपनी शक्ति के अनुसार जन्म भर हम आपकी आज्ञा पालन करने के लिए तैयार रहेंगे। आप जो कुछ कहेगे उसे करने में हम भरसक कोई कसर न रक्खेंगे। दुयोधन ने प्रसन्न होकर उत्तर दिया : हे अङ्गगज ! इस समय हम आपसे मित्रता जोड़ना चाहते हैं हम आपको अपना सखा बनाना चाहते हैं । बम यही हमारी इच्छा है। कर्ण ने कहा-तथास्तु ! जो कुछ आपने आज्ञा की हमें स्वीकार है। जब तक शरीर में प्राण हैं हम आपके मित्र रहेंगे। एक क्षण भर के लिए भी हम इस प्रतिज्ञा के विपरीत काम न करेंगे। फा०५