पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/५२

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३० मचित्र महाभारत [पहला खण्ड कभी बाण की नाक की तरह सूक्ष्म चीजें, कभी पत्थर की तरह मोटी चीजें वे छंदने लगे। कभी हिलते हुए लोहे के सुअर के मुँह में एक ही साथ पाँच पाँच बाण मारने लगे, कभी रस्मी से लटकते हुए बैल के सींग के भीतर इक्कीस इक्कीस बाण छेद देने लगे। इस तरह अर्जुन ने धीरे धीरे तीर, तलवार और गदा चलाने के सैकड़ों अदभत अदभत करतब दिखाये । ये सब आश्चर्य-भरी घटनायें जब हो चुकी, और सभा भङ्ग होने का समय जब आ गया, तब बाजा बजना बन्द हुआ और दर्शक लोग जाने की तैयारी करने लगे। उसी समय रङ्गभूमि के फाटक पर अचानक गोलमाल सुनाई दिया। उसके साथ ही किसी वीर पुरुप के खम ठोकने की आवाज़ आई। सब लोग विस्मय में आकर दरवाज़े की तरफ देखने लगे। द्रोणाचार्य उम समय पाँचों पाण्डवों के बीच में खड़े थे । उनकी भी दृष्टि उसी तरफ़ गई । अश्वत्थामा और अपने सौ भाइयों के बीच, हाथ में गदा लिय हुए, एक-शिखरवाले पर्वत की तरह दुर्योधन देख पड़े । दरवाजे के पास जो लोग बैठ थे वे इधर उधर हो गये। उन्होंने इन लोगों को भीतर जाने के लिए तुरन्त गह दी । जो दिव्य कवच और कुण्डल लेकर सृतपुत्र वीरवर कर्ण पैदा हुए थे उनसे अपने शरीर की शोभा बढ़ाते हुए वे रङ्गभूमि में आ खड़े हुए। बड़े गर्व से उन्होंने इधर उधर देखा । द्रोण और कृष्ण को कुछ तिरस्कार के साथ प्रणाम किया। सभा में जितने लोग थे वे इस बात के जानने के लिए उत्सुक हो उठे कि सूर्य के समान तेजवाला यह कौन वीर है। ___ इसके अनन्तर अर्जुन की तरफ़ कर्ण ने मुँह किया । याद रहे, अर्जुन कर्ण के भाई थे; पर इस बात को उनमें से कोई भी न जानता था । कर्ण ने कहा : हे अर्जुन ! तुम अपने मन में यह समझते होगे कि इस सारी प्रशंमा के तुम्हीं पात्र हो । किन्तु आश्चर्य की कोई बात नहीं, हम भी यह अद्भुत काम कर सकते हैं। इस तरह अभिमान से भरी हुई बात सुन कर सब लोगों को बड़ा विस्मय हुआ। सबका मन चंचल हो उठा । इस नई घटना का क्या फल होगा, यह जानने के लिए सब लोग उतावले हो गये। दुर्योधन को अर्जुन की प्रशंसा असह्य थी। अब तक उसने उमे बड़े दुःख मे सुना था। ईर्ष्या के कारण अर्जुन की प्रशंसा सुन सुन कर वह क्रोध स अब तक मन ही मन जलता रहा था। अब अपना एक साथी पैदा हआ देख उसे बडा आनन्द हा। सब लोगों के सामने कर्ग के ऐसे कठोर वचन सुन कर अर्जुन को लज्जा मालूम हुई; और साथ ही उन्हें क्रोध भी हो पाया। कर्ण ने अपने कहने के अनुसार वे सब काम अच्छी तरह कर दिखाये जो अर्जुन ने किये थे। यह देख कर दर्शक लोगी को बड़ा आश्चर्य हुआ। और लोग तो सब चुप रहे, पर दुर्योधन से न रहा गया । वे मार आनन्द के फूल उठे और कर्ण को गले से लगा कर कहने लगे : हे वीर ! आपके अद्भुत काम देख कर हम अत्यन्त प्रसन्न हुए। कर्ण ने कहा--हे प्रभु ! मैं समझता हूँ, मैंने अपनी जान वे सभी काम कर दिखाये जो अर्जुन ने किये हैं। अर्जुन के साथ द्वंद्व-युद्ध करके अब मैं इस बात की परीक्षा करना चाहता हूँ कि हम दोनों में कौन बढ़कर है। कर्ण को इस तरह बढ़ बढ़ कर बातें करते और दुर्योधन को बढ़ावा देते देख अर्जुन जल उठे। क्रोध से उनका चेहरा लाल हो गया। दुर्योधन को सुना कर वे कर्ण से कहने लगे : हे रथ हाँकनेवाले के पुत्र ! जो लोग बिना बुलाये ही सामने आते है, और बिना पूँछे ही व्यर्थ प्रलाप करते है, उन्हें जिस लोक को जाना चाहिए, आज हमारे हाथ से मारे जाकर तुम उसी लोक का रास्ता लोगे। कर्ण ने उत्तर दिया :-- हे अर्जुन ! इस रङ्गभूमि में आने का अधिकार योद्धा मात्र को है। कोई भी योद्धा यहाँ श्रा सकता है । बुलाने की जरूरत नहीं। किसी को बुलाने या निकाल देने का तुम्हें अधिकार भी नहीं। कुछ