पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/४२

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सचित्र महाभारत [पहला खण्ड संहार करने । यह देख नाग लोग व-तरह डरं । मारे डर के भाग कर नागों के राजा वासुकि के पास वे गये। वासुकि से उन्होंने कहा : हे राजन् ! मनुष्यों के लोक से एक महा-बलवान् कुमार अचानक हमारे राज्य में आया है । लतापाश से बंधा हुआ और अचेत देख कर उसे हम लोग काटने लगे। काटने से वह होश आगया ओर बन्धन को तोड़ कर हम सबका संहार करने पर उद्यत हो गया। आपको इस बात का पता लगाना चाहिए कि मनुष्य लोक से यह कोन वीर हमारे लोक में आया है। नागों के राजा वासुकि सर्पो को साथ लेकर भीमसेन के पास आये । उन्होंने भीमसन को पहचान लिया । कुन्ती के पिता कुन्तिभोज नागराज वासुकि के दौहित्र ( लड़की के पुत्र ) थे । भीमसेन उन्हीं कुन्तिभोज के दोहित्र निकले; क्योंकि वे कुन्ती-पुत्र थे । भीमसन को देखकर वासुकि बहुत प्रसन्न हुए । उनका बड़ा आदर-सत्कार किया। देर तक उनके साथ प्रीतिपूर्वक वान करते रहे । फिर भीमसेन के शरीर से विष का सारा असर दूर करने के लिए उन्होंने अमृतपूर्ण बतन से भीमसेन को एक दवा पिलाई। इससे भीमसेन का सारा दुःख क्लेश दूर होगया । तब नागों ने उन्हें एक दिव्य सेज पर सुलाया। उस पर भीमसेन को गहरी नींद आगई । इधर भीम को छोड़ कर और राजकुमार अनेक प्रकार की क्रीड़ाये और बिहार करके हार्थी, घोड़े और रथ आदि पर सवार होकर राजधानी को लौट आये । सबने मन म समझा कि भीमसेन पहले ही घर आ गये होंगे। उनक न आने का ठीक कारण अकल दुयाधन ही को मालूम था । इससे सब भाइयों के साथ बड़ी ही हँसी खुशी से उसने पुर में प्रवेश किया। युधिष्ठिर जल्दी जल्दी माता कुन्ती क पास आये और उनक पैर छूकर भाम के आने की बात पूछी । माता ने उत्तर दिया, भीम नहीं आये । युधिष्ठिर से कुन्ती ने जब सुना कि भीमसेन का हाल किसी को मालूम नहीं-वे जब से गंगा के किनारे सोने हुए देखे गये थे तब से उनका पता नहीं मिला--तब कुत्ती के मन में सन्देह हुआ । वह डर गई । उसने युधिष्ठिर से कहा : हाय, भीमसेन कहाँ गया ! वह तुमसे आगे नहीं आया । हे पुत्र ! तीन भाइया को लेकर तुरन्त जाव और उसे ढूँढ़ो। युधिष्ठिर के चल जाने पर विदुर को बुला कर कुन्ती ने कहा : है देवर । अाज सब लड़के उपवन में सैर करने गये थे; सब तो लौट आये, पर भीम नहीं लौटे । मैं बहुन दिन से देख रही हूँ कि कुचाली दुर्योधन भीम से मन ही मन अप्रसन्न है। वह उससे बहुत द्वेष रखता है। वह भीम का अनिष्ट चेता करता है । दुर्योधन महा कुटिल और कर है । वह सब कुछ कर सकता है । भने बुरे का विचार करने की उससे अाशा नहीं । उसकी तरफ से मेरे मन में बड़ा सन्देह है । इससे मेरा अन्तःकरण इस समय अत्यन्त व्याकुल हो रहा है । बुद्धिमान् विदुर ने कहा : हे कल्याणी ! अपने मन का सन्दह तुम किसी से भूल कर भी न कहना । आप इतना डरती क्यों हैं ? आपके सभी पुत्र दीर्घायु होंगे-वे बहुत समय तक बन रहेंगे । भीमसेन निश्चय ही लौट आवेंगे। उन्हें देख कर आप शीघ्र ही आनन्दित होगी। किन्तु कुन्ती को किली तरह सन्तोष न हुआ। भीमसन का चारों तरफ ढूंढ़ कर जब युधिष्ठिर विफल-मनोरथ घर लौट आये तब कुन्ती को और भी दुःख हुआ। भीम के शोक में वह जीती ही मरी सी हो गई। उधर आठ दिन हो जाने पर भीमसन की नींद खुली । तब वे उठ कर नागराज वासुकि के पास गये। वासुकि ने भीमसेन से कहा :- . हे महाबाहु ! तुमने जो अमृतोपम दवा पी है उससे तुम्हारे दस हजार हाथी का बल होगा! इस