पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/४०

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सचित्र महाभारत [पहला खण्ड अपन पुत्र और बहू की चिता में जलने देख पुत्र-शोक स विकल होकर पाण्डु की माता अम्बालिका पृथ्वी पर लोटने लगी। वह बहुत रोई, बहुत सिर धुना, बहुत विलाप किया। उसे विलाप करते देख कुन्ती भी अधीर हो उठी। वह भी रोने लगी। उन दोनों को इस तरह गंत देख और लोग भी गेन लग । कोई भी आँसुओं को गिरने से न रोक सका।। तिलाञ्जलि देने के बाद पिता के शोक से दुःखी पाण्डवों को सब लोग समझान और धीरज देने लगे । चारों तरफ दु:ख, शांक और उदासीनता छा गई। मब लोग शांकमागर में डूब गये। दम दिन बीत जाने पर भीष्म और धृतराष्ट्र आदि ने इकट्ठे होकर दशाह-मम्बन्धिनी क्रिया की और सृतक दूर होने पर पाण्डवों को साथ लेकर हस्तिनापुर लौट आये । पाण्डु का श्राद्ध हो चुकने पर मत्यवती ने रनिवाम में जाकर अपनी पुत्र-वधू में इस प्रकार कहा : हे अम्बिका, पुत्र द्वैपायन म मैन मुना है कि तुम्हार जंठं पान के जन्म-समय में अनेक प्रकार के अशकुन होने पर भी जब उसका परित्याग नहीं किया गया तब हमाग वंश बहुत जल्द विपद में पड़े बिना न रहंगा । इस दशा में क्या हम फिर भी सुख से मंसार में रह सकेंगी ? चलो पुत्र के शोक से दखी अम्बालिका को लेकर हम सव किमी वन में जा रहें। ___अम्बिका ने इस बात को मान लिया। मत्यवती अपनी दोनों बहुओं को माथ लेकर वन को चली गई। वहाँ कठिन तपस्या करतं करनं शरीर छूटने पर उन्हें मनमान लोक की प्राप्ति हुई। ३-पाण्डवों और धृतराष्ट्र के पुत्रों का बालपन युधिष्ठिर आदि पाँचों पाण्डव पिता के घर में नाना प्रकार के गज-सुग्वां का भाग करने हुए दिन दिन बढ़ने लगे। दुर्योधन आदि सौ भाइयों के माथ व सदा बड़े कौतुक मे खलतं कूदते थे। जितने खेल-कूद होते थे सबमें पाण्डवों ही का तेज अधिक देख पड़ता था। हार-जीत के खेल में बहुत करके पाण्डव ही जीततं थे। कमरत में, या ऐस खला में जिनमें बल दरकार होता है, भीमसन सबसे अधिक प्रवीण थे । दुर्योधन और उसके भाइयों को उनसे सदा ही हार खानी पड़ती थी। भीमसेन बात की बात में उन्हें हरा देत थे। भीमसेन इतने बली थे कि जो काम करना व खेल समझते थे वही दुर्योधन आदि कौरवों को बहुत कष्ट का कारण होता था । भीमसन उनका नाक में दम कर दिया करते थे। कभी दुर्योधन आदि कौरवों में से दो भाइयों को एक दूसरे के साथ रगड़ कर उन्हें पीस डालत थे। कभी बाल पकड़ कर एक झटके से उन्हें जमीन पर मुंह के बल गिरा देते थे। कभी जल-विहार करते समय उन्हें अथाह जल में डुबो देते थे। यदि वे पेड़ पर चढ़ जाते थे तो पंड़ पर लात मार कर उसकी एक एक डाल को वे इतना ज़ोर से हिला देते थे कि धृतराष्ट्र के पुत्र धड़ाम धड़ाम नीचे गिर जाते थे। इसी तरह भाँति भाँति से भीमसेन उन लोगों को तंग करते थे। इससे भीमसेन उनके शत्रु हो गये। भीमसन को इतना बली देख कर दुर्योधन को सबसे अधिक बुग लगा। भीमसेन का बल, पराक्रम और साहस देख कर उसे बड़ी ईर्ष्या हुई। उसने मन में सोचा कि बल तो हम लोगों में इतना है ही नहीं जो भीमसेन से हम बदला ले सकें। बल से उन्हें हराना या मारना संभव नहीं। इससे छल और युक्ति से काम लेना चाहिए। किसी कौशल से कपट