३२६ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड पर वे कुछ ही दूर गये होंगे कि शिकारियों से भरे हुए उस वन में किसी शिकारी ने लोहे का मुद्गर उन पर फेंका। उसकी चोट से वे जमीन पर गिर पड़े। जब महात्मा कृष्ण ने देखा कि वे मर गये तब लाचार होकर ध्यान में बैठे हुए बलराम से वे बोले :- हे श्रार्य्य ! हम स्त्रियों की रक्षा का प्रबन्ध करके जब तक लौट न पावें तब तक तुम यहीं हमारा इन्तजार करना। यह कह कर कृष्ण शीघ्र ही नगर में गये और पिता के पास जाकर बोले :- हे पिता ! हमने हस्तिनापुर दूत भेजा है । यह दुःखदायी खबर पाकर जब तक अर्जुन यहाँ न श्रावें तब तक आप अन्त:पुर की स्त्रियों की देख-भाल कीजिएगा। हमारे मित्र आकर जैसा प्रबन्ध करें वैसा आप बिना विचारे मान लीजिएगा। इस समय बड़े भाई वन में बैठे हमारी राह देख रहे हैं; इसलिए हम उनके पास जाते हैं। वन में बलराम के पास आकर कृष्ण ने देखा कि उसी पेड़ के नीचे उनकी देह काठ की तरह अचेत अवस्था में पड़ी है। वे तुरन्त समझ गये कि योग की अवस्था में उनके प्राण निकल गये हैं। तब व्याकुल होकर कृष्ण उस निर्जन वन में इधर उधर घूमने लगे । अन्त में यह सोच कर कि जो कुछ होनहार होता है वह अवश्य होता है, वे लाचार होकर एक जगह बैठ गये। इसी समय एक शिकारी वहाँ शिकार खेलने आया। दूर से कृष्ण को मृग समझ कर उसने बाण फेंका। वह बाण कृष्ण के तलवे में घुस गया। शिकार को उठाने के इरादे से जब वह शिकारी कृष्ण के पास आया तब उन्हें देख कर वह घबरा गया। अपने कृतापराध से उसे बड़ी लज्जा हुई । वह कृष्ण के चरणों पर गिर पड़ा । कृष्ण ने समझा बुझा कर उसे शान्त किया और प्राण-त्याग करके स्वर्ग को चल दिया। ___इधर कृष्ण का सारथि दारुक हस्तिनापुर में पहुँचा और पाण्डवों से प्रभासतीर्थ की सारी दुःखदायक कथा सिलसिलेवार कह सुनाई । यह सुन कर शोक से वे लोग महा व्याकुल हुए । कृष्ण के प्यारे मित्र अर्जुन दारुक के साथ द्वारका को तुरन्त चल दिये। वहाँ पहुँच कर अर्जुन ने देखा कि द्वारका नगरी अनाथ स्त्री की तरह अत्यन्त हीन दशा को प्राप्त है । अर्जुन को देखते ही अन्त:पुर की स्त्रियाँ जोर से रोने लगीं। उन पति-पुत्रविहीन स्त्रियों का आर्तनाद सुन कर अर्जुन अधीर हो उठे। उनकी आँखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। इससे उन्हें कुछ न सूझ पड़ने लगा। अन्त में कृष्ण की प्यारी गनियों को हेमन्तकाल की कमलिनी की तरह कुम्हलाई हुई देख कर महावीर अर्जुन से और न रहा गया; वे रोते रोते जमीन पर गिर पड़े। तब वे हतभागिनी रानियाँ उन्हें घेर कर विलाप करने लगीं । कुछ देर बाद उन्होंने अर्जुन को जमीन से उठाया और सोने की चौकी पर बिठा कर उनके चारों ओर बैठ गई। इसके बाद अर्जुन बड़ी देर तक कृष्ण का सोच करते रहे। त्रियों को उन्होंने बहुत कुछ धीरज दिया। फिर वे मामा से मिलने के लिए उनके घर गये। वहाँ उन्होंने देखा कि वृद्ध वसुदेव पड़े हुए है; उठ नहीं सकते । उनको इस हालत में देख कर अर्जुन बड़े दुखी हुए। रोते हुए उन्होंने वसुदेव के पैर छुवे । दुर्बलता के कारण वसुदेव उनका माथा न सूंघ सके; इसलिए हाथ फैला कर उनका आलि- गान किया और बोले :- बेटा ! जिन्होंने हजारों राजों और राक्षसों को परास्त किया था आज हम उन्हें न देखकर भी जीवित हैं । तुम जिन प्रद्युम्न और सात्यकि को अपना प्यारा शिष्य समझ कर सदा उनकी प्रशंसा
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