दूसरा खरड] यदुवंश-नाश ३२५ प्रभासतीर्थ भर गया। सब कहीं आनन्द और कोलाहल होने लगा। अन्त में यहाँ तक नौबत पहुँची कि बलराम, सात्यकि, गद, बभ्रु और कृतवर्मा, कृष्ण के सामने ही शराब पीने लगे। बुद्धिमान् कृष्ण ने समझा कि काल की गति अमिट है। इससे वे चुपचाप यह सब अत्याचार देखते रहे । किसी को मना न किया। ___ इसी समय एक दिन सात्यकि शराब पीकर बहुत मतवाले हुए । उसी अवस्था में वे कृतवर्मा से दिल्लगी करने लगे। उन्होंने कहा :- ___ कृतवर्मा ! क्षत्रियों में कोई ऐसा पाखण्डी नहीं जो तुम्हारी तरह मुर्द के समान सोते हुए मनुष्यों की हत्या करे। प्रद्युम्न ने भी सात्यकि का पक्ष लेकर कृतवर्मा का अपमान किया। यह सुन कर महावीर कृतवर्मा ने भी सात्यकि की अवज्ञा की । बायाँ हाथ उठा कर वे बोले :- सात्यकि ! तुम बड़े वीर हो न ! फिर क्यों तुमने जमीन पर बैठे हुए हाथ कटे भूरिश्रवा को मारा ? कृतवर्मा की इस बात से ऋद्ध होकर कृष्ण ने टेढ़ी निगाह से उनकी ओर देखा । पर कुछ फल न हुआ। सब लोग एक दूसरे का कलङ्क कहने लगे। इस प्रसङ्ग में जब कृष्ण की पत्नी सत्यभामा के पिता की निन्दा होने लगी तब वे रोती हुई अपने पति की गोद में गिर पड़ीं। इस पर सात्यकि से न रहा गया । वे एक-दम से उठ कर बोले :- ___ भद्रे ! हम सच कहते हैं, आज इस पापी कृतवर्मा की मृत्यु आ गई जान पड़ती है। यह कह कर महावीर सात्यकि ने कृष्ण के सामने ही कृतवर्मा का सिर तलवार से काट दिया। इसके बाद वे दूसरे वीरों पर भी आक्रमण करने लगे। यह देख कर कृष्ण उनको रोकने के लिए दौड़े। इतने में भोज ओर अन्धक लोग भी बेहोशी की हालत में दौड़ पड़े और सात्यकि को घेर लिया। वे लोग गिनती में अधिक थे । इससे प्रद्युम्न और सात्यकि थोड़ी ही देर युद्ध करके मारे गये। तब कृष्ण से और न रहा गया। उन्होंने एक मुट्ठी तिनके उठा लिये और मूसल की तरह उन्हें चलाने लगे। उनसे भोज और अन्धक लोग मर मर कर गिरने लगे। यह देख कर सभी लोगों ने उनकी तरह तिनके उठा लिये और पिता पुत्र को तथा पुत्र पिता को बिना विचारे मारने लगे। फल यह हुआ कि झुण्ड के झुण्ड यादव-वंशियों ने, आग में गिरे हुए पतङ्गों की तरह, प्राण त्याग किये । धीरे धीरे साम्ब, चारुदेष्ण, अनिरुद्ध और गद आदि सभी मारे गये । अन्त में जब कृष्ण, बभ्र और दारुक के सिवा वहाँ कोई जीता न बचा तब दारुक ने कहा :- हे कृष्ण ! यदुकुल का तो नाश हो गया; अब चलो बलराम के पास चलें। कृष्ण इस बात पर राजी हो गये । वे लोग बलराम को ढूँढ़ने के लिए इधर उधर घूमने लगे। अन्त में उन्होंने वन के बीचोंबीच एक निजेनस्थान में एक पेड़ के नीचे उनको ध्यान में मग्न पाया। तब कृष्ण ने दारुक से कहा :- हे सारथि ! तुम शीघ्र ही हस्तिनापुर जाव और अर्जुन से यादवों के नाश का हाल कहो । यह खबर पाते ही वे जरूर यहाँ आयेंगे। फिर वे पास खड़े हुए बभ्रु से बोले :- भद्र ! तुम स्त्रियों की रक्षा के लिए शीघ्र ही नगर जाव।। महावीर बभ्रु नशे में चूर चुपचाप बैठे थे। कृष्ण की आज्ञा पाते ही वे नगर की ओर चले।
पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३५७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।