पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३४३

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दूसरा खण्ड] अश्वमेध यज्ञ ३११ जब इसके उत्तर में नागकन्या उलूपी ने उनसे सब हाल कहा तब अर्जुन पुत्र से अत्यन्त प्रसन्न होकर बोले : बेटा ! अश्वमेध यज्ञ के अवसर पर तुम माता, विमाता और मन्त्रियों को साथ लेकर हस्तिनापुर जरूर आना। बभ्रुवाहन ने उत्तर दिया : पिता ! हम आपकी आज्ञा के अनुसार अश्वमेध यज्ञ में आकर ब्राह्मणों की सेवा करेंगे। अब आप अपने इस मणिपुर-भवन में चलिए और यह रात सुख से बिताइए । महावीर अर्जुन ने यह बात न मानी । उन्होंने हँस कर कहा :-- हे पुत्र ! यह तो तुम जानते ही हो कि हम इस समय कैसे नियम में बंधे हुए हैं। यज्ञ का यह घोड़ा अपनी इच्छा के अनुसार जहाँ जायगा हमें भी वहीं जाना पड़ेगा। इसलिए हम नगर में नहीं जा सकते । ईश्वर तुम्हारा मङ्गल करे । अब हम जाते हैं। तब अर्जुन, पुत्रद्वारा पूजित होकर, और दोनों पत्रियों से प्रेम-पूर्ण बातें करके, चल दिये । इसके बाद वह स्वेच्छाविहारी घोड़ा तमाम दुनिया में घूम कर हस्तिनापुर की तरफ लौटा । मगधराज्य, चेदिदेश, द्वारका और गान्धार पार करके वह हस्तिनापुर के पास पहुँच गया। किसी राजा ने प्रसन्नतापूर्वक, किसी ने युद्ध में हार कर, सभी ने युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ में आना स्वीकार किया। इधर दूतों के द्वाग यह खबर पाकर कि घोड़ा लौट आया है और अर्जुन कुशल से हैं, धर्मराज बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने माघ की द्वादशी को भीमसेन, नकुल और सहदेव को अपने पास बुलाया और भीमसेन से कहा : भाई ! हमने सुना है कि तुम्हारे छोटे भाई अर्जुन घोड़े के साथ निर्विन आ रहे हैं। अब माघ महीना समाप्त होने पर है । यज्ञ आरम्भ करने के बहुत दिन नहीं हैं। इसलिए वेद-पारदर्शी ब्राह्मणों को आज्ञा दो कि यज्ञ के लिए उचित स्थान पसन्द कर लें। अर्जुन के शुभागमन का वृत्तान्त सुन कर महावीर भीमसेन बड़े प्रसन्न हुए और यज्ञ-कुशल ब्राह्मणों तथा चतुर राजमिस्त्रियों के साथ यज्ञ के लिए स्थान चुनने गये। उन लोगों की सलाह से उन्होंने एक जगह पसन्द की और उसके बीच में उतना स्थान जितना कि यज्ञ के लिए उपयुक्त था सोने से मढ़वा दिया। इसके बाद राज-मिस्त्री लोग इस स्थान के चारों तरफ़ आनेवाले राजा, रानी और ब्राह्मणों के रहने योग्य सैकड़ों महल और घर बनाने और उनकी फर्श और छतों को नाना प्रकार के रत्न और मणियों से विभूषित करने लगे। सब काम हो चुकने पर युधिष्ठिर के आज्ञानुसार भीमसेन ने राजों के पास दूत भेजे । खबर पाते ही राजा लोग युधिष्ठिर के लिए नाना प्रकार के धन, रत्न, वाहन आदि लेकर हस्तिनापुर आये और डेरे डाल दिये । इससे वहाँ धूम मच गई । धम्मराज ने इन मेहमान राजों के लिए खाने-पीने के सामान और बड़े बड़े पलँगों आदि का प्रबन्ध किया। सवारियों के लिए उन्होंने अनाज और ईख से परिपूर्ण घर देने की आज्ञा दी। जब राजमिस्त्रियों और अन्य कारीगरों ने यज्ञ का सब सामान तैयार होने की खबर दी तब सब लोग नगर से उस स्थान को गये । वहाँ सभा में बैठ कर बातूनी ब्राह्मण लोग एक दूसरे को हराने की इच्छा से तर्क वितर्क करने लगे और राजा लोग यज्ञशाला और यज्ञ का सामान देखने लगे। कहीं चित्र विचित्र सुनहले तोरण, कहीं नाना प्रकार की शय्यायें और विहार करने की सामग्री, कहीं अनेक प्रकार के सुनहले घड़े, कलसे और कड़ाहियाँ, कहीं सोने से पक्के बंधे हुए कुएँ, कहीं अनोखे अनोखे