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[दूसरा खण्ड
सचित्र महाभारत

अश्वत्थामा उनसे मिले । राजा को रोते हुए देख कर तीनों वीरों ने ठण्डी साँस ली और गद्गद स्तर से कहने लगे :- ___ महागज ! बड़े बड़े दुस्तर काम करने के बाद आपके पुत्र नौकरों समेत इन्द्रलोक को गये हैं। हम तीन श्रादमियों को छोड़ कर हमारी सब सेना नष्ट हो गई। इसके अनन्तर महावीर कृपाचार्य ने पुत्रशोक से व्याकुल गान्धारी से कहा :- देवी ! तुम्हारे पुत्र निर्भय होकर वीरों की तरह लड़ कर शत्रुओं को मारते हुए मरे हैं। इस समय वे निश्चय ही स्वर्गलोक में देवताओं के साथ विहार करते होंगे। आपके पुत्रों के शत्रु सहज ही में बच कर नहीं निकल गये। जब दुष्ट भीमसन ने दुर्योधन को अधर्म-युद्ध में मारा तब उसी रात को हम लोगों ने पाण्डवों की तरफ के बचे हुए वीरों को एक एक करके मार डाला । पुत्रशोक के कारण पाण्डव लोग इस समय पागल से हो रहे हैं और हमें हूँढ़ते फिरते हैं। इसलिए यहाँ देर तक ठहरने का हमें साहस नहीं होता । अब हमें जाने की आज्ञा दीजिए। आप अब और शोक न कीजिए। कुरुक्षेत्र जाइए और वहाँ देखिए कि क्षत्रियों के धर्म का कहाँ तक पालन हुआ है। आपको क्षात्र धर्म की पराकाष्ठा देखने को मिलेगी। यह कह कर उन तीनों वीरों ने धृतराष्ट्र की परिक्रमा की और गङ्गाजी की तरफ़ रथ हाँक दिया। किन्तु थोड़ी ही दूर गये होंगे कि वे घबरा कर अलग अलग हो गये और तीनों तीन रास्ते से भागे। कृपाचार्य हस्तिनापुर, कृतवम्मा अपनी राजधानी और अश्वत्थामा व्यास के आश्रम को गये। इधर धृतराष्ट्र के हस्तिनापुर से चलने की खबर पाकर युधिष्ठिर उनसे मिलने के लिए कृष्ण, सात्यकि, युयुत्सु और अपने भाइयों के साथ चले। द्रौपदी भी शोक करती हुई पाञ्चाल-स्त्रियों के साथ धर्मराज के पीछे पीछे चली। कुरुक्षेत्र के पास पहुँच कर उन लोगों ने देखा कि पुत्रों के शोक से दुखी धृतराष्ट्र स्त्रियों से घिरे हुए आ रहे हैं । स्त्रियों का विलाप सुन कर युधिष्ठिर बड़े दुखी हुए । इसलिए उन सबको जल्दी से पार करके वे धृतराष्ट्र के पास जा पहुँचे और उनको प्रणाम किया । पर राजा धृतराष्ट्र क्रोध से भरे बैठे रहे; पाण्डवों को उन्होंने आशीर्वाद न दिया। कृष्ण ने कहा :-हे राजन् ! खुद ही अपराध करके आप दूसरों पर क्यों क्रोध करते हैं ? हम लोगों ने आपसे पहले ही कहा था कि पाण्डव लोग बड़े बलवान हैं; इसलिए उनके साथ मेल कर लेना चाहिए। तब तो आपने हमारी बात न मानी। अब क्यों धर्मराज के हृदय में पीड़ा पहुँचाते हैं ? उन्होंने क्या अपराध किया है ? जब सभा में आपके सामने ही दुर्योधन ने द्रौपदी पर अत्याचार किया था तभी वे मार डालने के योग्य थे। उस समय आपने उन्हें न रोका । इसलिए अब आप अपना क्रोध शान्त कीजिए। कृष्ण की बात सुन कर धृतराष्ट्र लज्जित हुए। उनका क्रोध जाता रहा । उन्होंने कहा :- हे वासुदेव ! तुम्हारा कहना ठीक है। पुत्र-स्नेह के कारण थोड़ी देर के लिए हम अधीर हो गये थे। ___ यह कह कर कुरुराज धृतराष्ट्र ने पाण्डवों से आदरपूर्वक बातचीत की और उन्हें धीरज देकर आशीर्वाद दिया। इसके बाद पाण्डव लोग कृष्ण के साथ गान्धारी के पास गये। उन्हें पाया जान वे युधिष्ठिर को शाप देने को तैयार हुई । व्यासदेव ने यह बात योगबल से जान ली। इसलिए एकाएक आकर वहाँ वे उपस्थित हुए और बोले :-