२८८ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड वहाँ रथ से उतर कर उन्होंने देखा कि दुर्योधन अचेत पड़े हुए हैं, शरीर से रुधिर की धारा बह रही है, और मरने में अब थोड़ी ही कसर है। भेड़िये, गीदड़ और कुत्तों ने उन्हें घेर रक्खा है और जीते ही उन पर आक्रमण करना चाहते हैं । यद्यपि दुर्योधन का अन्तकाल पास है और अङ्ग शिथिल हो रहे हैं, तथापि बड़े कष्ट से हाथ उठा कर वे उन हिंस्र जीवों का निवारण कर रहे है । यह दशा देख उन तीनों वीरों के शोक की सीमा न रही। मारे दु:ख के वे व्याकुल हो उठे और दुर्योधन को घेर कर बैठ गये। कुत्तों और गीदड़ों आदि के भाग जात ही कुरुराज दुर्योधन बिलकुल ही अचेत हो गये। तब वे तीनों कौरव-वीर मारे दु:ख के जोर जोर रोने और हाथ से दुर्योधन के मुँह की धूल पोंछ कर विलाप करने लगे :- हाय ! काल की लीला बड़ी विचित्र है। जो राजराजेश्वर थे-जिनके सामने बड़े बड़े राजे सिर झुकाते थे--वही इस समय यहाँ धूल से लिपटे हुए अनाथ की तरह पड़े हैं। भारत के असंख्य भूपाल मारे डर के जिनके पैरों पर अपना मस्तक रखते थे वही आज अचेत अवस्था में जमीन पर पड़े हैं और उन्हीं के शरीर का मांस नोच खाने के लिए कुत्ते और गीदड़ इकट्टा हैं । इस गदा के प्रेमी वीर की गदा, प्यारी भार्या की तरह, इसके साथ अन्तिम शय्या में सो रही है। इसके अनन्तर दुर्योधन के प्यारे मित्र अश्वत्थामा, अचेत पड़े हुए दुर्योधन को पुकार कर, कहने लगे :- महाराज ! यदि जीते हो तो कानों को सुख देनेवाला समाचार सुनो। इस समय पाण्डवों के पक्षवालों में से पाँच पाण्डव, कृष्ण, और सात्यकि, इन सात आदमियों को छोड़ कर और कोई जीता नहीं । गत रात को पाण्डवों के शिविर में घुस कर बची हुई सारी सेना, तथा द्रौपदी के पाँच पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी आदि पाञ्चाल लोगों का नाश करके हमने वैर का अच्छी तरह बदला ले लिया। द्रोण-पुत्र के मुँह से ऐसा आनन्ददायक और प्रीति-वर्द्धक ममाचार सुनने से दुर्योधन को क्षण भर चेतना हो आई । वे धीरे से बोले :- हे वीर ! महाबली भीष्म, कर्ण और तुम्हारे पिता से जो काम नहीं हुआ वह तुमने भोजराज कृतवर्मा और कृपाचार्य के साथ मिल कर कर दिखाया। महानीच पाञ्चाल लोगों के मारे जाने का समाचार सुन कर आज हम अपने को इन्द्र-तुल्य भाग्यवान् समझते हैं। भगवान् तुम्हारा मङ्गल करे ! स्वर्ग में तुमसे हमारी फिर भेंट होगी। इतनी बात कह कर दुर्योधन ने कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्थामा को हृदय से लगाया और प्राण छोड़ दिये । उस समय उन तीनों वीरों को जो शोक हुआ उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। कुरुराज दुर्योधन को बार बार छाती से लगा कर वे लोग अपने अपने रथ पर सवार हुए और नगर की तरफ चले। ७-युद्ध के बाद की बातें जिस दिन दुर्योधन मरे उसके दूसरे ही दिन सवेरे महात्मा सञ्जय हस्तिनापुर को गये। शोकाकुल चित्त से नगर में पहुँच कर वे दोनों हाथ उठाये और कॉपते तथा हा महाराज ! हा महा- राज !-कह कर रोते हुए धृतराष्ट्र के महल की तरफ दौड़े। स्त्री, बालक, वृद्ध सभी नगर-निवासी सञ्जय का ढंग देख कर असली बात समझ गये और हा महाराज! हा महाराज! कह कर रोने चिल्लाने लगे।
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