पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३००

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२६८ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड गये थे तब तुम्हारा धर्म कहाँ था ? और, जब तुम सब सात महारथियों ने मिलकर अकेले बालक अभिमन्यु को घेर कर उसका वध किया था तब भी तुम्हारा धर्म कहाँ था ? इस समय धर्म, धर्म, की व्यर्थ रोर मचाने से क्या होना है ? कृष्ण के ऐसे वचन सुन कर कर्ण ने सिर नीचा कर लिया और चुप हो रहे। उनके मुँह से कोई उत्तर न निकला । वे कोच में फंसे हुए अचल रथ से ही महाघोर बाण बरसाने लगे। उनमें से एक बड़ा ही भयङ्कर बाण बड़े वेग से अर्जुन की छाती में लगा । वह शरीर के भीतर दूर तक धंस गया। उससे अर्जुन बहुत घायल हुए ! ऐसी गहरो चोट उन्हें लगी कि गाण्डीव उनके हाथ से छूट पड़ा और उनका सारा शरीर कँपने लगा। कुछ देर वे काठ की तरह रथ पर अचेत बैठे रह गये। इसी समय कर्ण रथ से कूद पड़े और प्राणों की परवा न करके रथ के पहिये को कीच से निकालने की चेष्टा करने लगे। परन्तु पहिया कीचड़ में इतना धंस गया था कि हजार प्रयत्न करने पर भी वह टस से मस न हुआ। इतने में अर्जुन की तबीयत ठिकाने आई देख कृष्ण ने कहा : हे अर्जुन ! कर्ण के फिर रथ पर चढ़ने के पहले ही उनका सिर काट लो। ____तब अर्जुन ने इन्द्र के वन सदृश एक बाण तरकस से निकाल कर गाण्डीव पर रक्खा । मुंह फैलाये हुए काल की तरह उस महाभीषण अस्त्र को कान तक खींच कर उन्होंने छोड़ दिया। जलती हुई उल्का की तरह आकाश को प्रकाशपूर्ण करके उसने कर्ण के सिर को काट लिया और शरद ऋतु के आकाश-मण्डल से गिरे हुए सूर्य की तरह उस सिर को धड़ से धरती पर गिरा दिया। बिजली के गिरने से जैसे पर्वत का शिखर कट कर जमीन पर गिर जाता है और उससे गेरू की धारा बह निकलती है. उसी तरह कर्ण का ऊँचा पूरा शरीर भी जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ा और कटी हुई गरदन से रुधिर का फव्वारा छूटने लगा। तब वासुदेव को परमान्द हुआ-उनके आनन्द की सीमा न रही । उन्होंने बड़े जोर से शङ्ख बजाना आरम्भ किया। पाण्डवों के पक्ष के अनगिनत वीर अर्जुन के पास इकट्ठे हो गये और उनकी प्रशंसा करके सिंहनाद करने और अस्त्रों को ऊँचा उठा उठा कर हिलाने लगे। दुर्योधन के दुःख की कुछ न पूछिए । उनके नेत्रों से आँसुओं की नदी बह चली । बड़े ही दीनभाव से वे कर्ण की लोथ के पास पहुँचे। उनके साथ अनेक कौरव लोग भी आये । उन सबने कर्ण के मृत शरीर को घेर लिया। तब रुंधे हुए कण्ठ से मद्रराज शल्य इस प्रकार कहने लगे : ___महाराज ! कर्ण और अर्जुन का ऐसा महा-युद्ध और कभी नहीं हुआ। महावीर कर्ण ने कृष्ण और अर्जुन को पहले अत्यन्त ही पीड़ित किया-उनकी नाकों दम कर लिया। परन्तु दैव पाण्डवों के पक्ष में है; इसी से अर्जुन जीते हैं और कर्ण इस प्रकार धरती पर पड़े हुए हैं। खैर जो कुछ होना था हो गया। अब सोच करने से क्या है । भाग्य में जो कुछ होता है वह टल नहीं सकता। राजा दुर्योधन ने शल्य की बात का कुछ भी उत्तर न दिया; परन्तु अपनी अनीति याद करके वे दुःख से अचेत से हो गये और ठंडी साँसें खींचने लगे। सायङ्काल सञ्जय ने युद्ध-भूमि से लौट कर युद्ध-सम्बन्धी सारी कथा धृतराष्ट्र से कह सुनाई। अन्त में उन्होंने कहा : इस प्रकार महावीर कर्ण ने अपने विषम बाणों से पाण्डवों की सेना को पीड़ित कर दिया। परन्तु अर्जुन से वे पार न पा सके। अन्त को सन्ध्या समय उनके बल-विक्रम के प्रभाव से कर्ण को प्राण छोड़ने पड़े।