पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२९६

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२६४ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड डरपोक और कठोरवादी हैं। हमारे ही कारण हमारे कुल का नाश हुआ है । अतएव तुम शीघ्र ही हमाग सिर धड़ से जुदा कर दो। अपने जेठे भाई के मुंह से ऐसे नम्र वचन सुन कर अर्जुन प्रसन्न भी हुए और लज्जित भी। वे युधिष्ठिर के पैरों पर गिर पड़े और बार बार कहने लगे : हमने क्रोध में आकर जो दुर्वचन तुम्हे कह डाले हैं उनके लिए कृपापूर्वक हमें क्षमा कीजिए। ___ अर्जुन का अपने पैरों पर लोटतं और रोते देख युधिष्ठिर ने उन्हें उठा लिया और हृदय से लगा कर बड़े प्रेम से उनके आँसू पोछने लगे। इस तरह दोनों भाई बड़ी देर तक रोते रहे । अन्त में दोनों के मन का मैल दूर हो गया और वे फिर परस्पर एक दूसरे के ऊपर पहले ही की तरह प्रेम करने लगे । तब धर्मराज ने कहा : ___हे अर्जुन ! तुमने जो कुछ कहा, बुरा नहीं कहा । तुम्हारी बात कठोर होकर हमारे लिए हितकर है अतएव हमने तुम्हें क्षमा किया। जो न कहना चाहिए था वह हमने तुम्हें कह डाला । इससे तुम क्रोध न करना। अब हम तुम्हें आज्ञा देते हैं कि तुम कर्ण को मारो। युधिष्ठिर की आज्ञा पाकर युद्ध में जाने के पहले अर्जुन ने कहा :--- महाराज ! तुम्हारा पैर छूकर हम प्रतिज्ञा करते हैं कि कर्ण को मारे बिना आज हम युद्ध-भूमि से न लौटेंगे। दोपहर के बाद, भीमसेन की आँखों के सामने ही, महावीर कर्ण ने सोमक-सेना को बहुत ही पीड़ित करना प्रारम्भ किया। भीम भी दुर्योधन की सेना में घुस पड़े और महा अद्भुत पराक्रम दिखाने लगे। वे ऐसी विषम मार मारने लगे कि कौरवों की सेना का धीरज छूट गया। उसकी दुर्गति होते देख दुर्योधन, अश्वत्थामा और दुःशासन आदि वीरों ने, अपनी सेना के बचाव के लिए, भीमसेन पर आक्रमण किया। मबसे पहले वीरन दुःशासन ने बाण-वर्षा करके बड़ी ही निर्भयता से भीमसेन के साथ युद्ध आरम्भ किया। दोनों वीर एक दूसरे को मार डालने की जी जान से. कोशिश करने लगे। वे लोग ऐसे तेज़ बाण छोड़ने लगे जिनमें देह को काट कर टुकड़े टुकड़े कर डालने की शक्ति थी। इस तरह के बाणों से उन्होंने परस्पर एक दूसरे को तोप दिया। इस पर महा. पराक्रमी भीम को बड़ा क्रोध हुआ। उन्होंने दुःशासन पर एक चमचमाती हुई तीक्ष्ण शक्ति छोड़ी। दुःशासन ने देखा कि जलती हुई उल्का की तरह वह हमारे ऊपर आ रही है । इस पर उन्होंने अपने धन्वा को कान तक खींच कर दस बाण एक ही साथ ऐसे मारे कि बीच ही में वह टुकड़े टुकड़े होकर जमीन पर गिर पड़ी। यह देख कर कौरवों को बड़ी खशी हुई। वे इस काम के कारण दुःशासन की बार बार प्रशंसा करने लगे। वीरवर दुःशासन ने समर के मैदान में आश्चर्यकारक कौशल दिखाया। उन्होंने भीमसेन के शरीर को अपने तीखे शरों से छेद दिया, उनके धनुष को काट डाला और सारथि को घायल किया। तब भीमसेन ने छुरे के समान तेज दो बाण मार• कर दुःशासन के धनुष और ध्वजदण्ड के टुकड़े टुकड़े कर डाले और उनके सारथि को मार गिराया। इस कारण, राजकुमार दुःशासन को घोड़ों की रास अपने ही हाथ में लेनी पड़ी । उन्होंने घोड़ों को वश में रख कर एक नया धनुष ग्रहण किया। उस पर उन्होंने वज्र के समान एक महा भीषण सर सन्धान करके भीमसेन पर छोड़ा। वह बाण भीम की देह फाड़ कर निकल गया और वे दोनों हाथ फैला कर रथ पर गिर पड़े । परन्तु ज़रा ही देर में वे फिर उठ बैठे और दुःशासन से कहने लगे :-