पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२९१

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दूसरा खरड ] अन्त का युद्ध २५९ कर्ण बराबर यह बात कहते हुए समुद्र से निकला हुआ अपना अच्छे सुरवाला शङ्ख बजाने लगे। यह देख कर कुरु-राज दुर्योधन के हर्ष का ठिकाना न रहा । वे कर्ण के पीछे पीछे चले। किन्तु महावीर शल्य उनका ठट्ठा करने लगे । वे बोले :- हे सूत-पुत्र ! तुम्हें किसी को कुछ भी देकर अपना धन व्यर्थ न फूंकना होगा। तुम्हें बहुत जल्द अर्जुन दिखाई देंगे। यह तुम्हारा लड़कपन अथवा नासमझी है जो तुमने कृष्णार्जुन के मारने का सङ्कल्प किया है। क्या तुम्हारा कोई भी इष्ट-मित्र और बन्धु-बान्धव ऐसा नहीं है जो तुम्हें इस सयय इस आग में गिरते देख रोके ? जब तुम्हें भले बुरे का ज्ञान ही नहीं रहा तब निश्चय ही तुम्हारे जीवन के दिन बीत चुके । गले में पत्थर बाँध कर समुद्र पार करने, अथवा पहाड़ की चोटी से कूद कर उससे उतरने, के समान तुम्हारी यह कृष्णार्जुन के मारने की इच्छा महा अनर्थ करनेवाली है । यदि तुम अपना भला चाहते हो तो अपने योद्धाओं के दल का एक व्यूह बनाओ और उनसे कहा कि वे तुम्हारी रक्षा करें। इस प्रकार उनसे रक्षित हो कर तुम अर्जुन के सा युद्ध करो। यह न समझो कि हम तुमसे द्वेष करते हैं; नहीं, दुर्योधन के भले के लिए ही हम तुमसे ऐसा कहते हैं। कर्ण ने कहा :-हे शल्य ! हमें अपने भुज-बल पर पूरा भरोसा है। हमने अपने बल का अच्छी तरह विचार कर लिया है; तब हम इस तरह अर्जुन के साथ युद्ध करने चले हैं । तुम मित्रता के बहाने हमसे शत्रुता करते हो। इसी से तुम हमें डराने की चेष्टा कर रहे हो। परन्तु तुम्हारी यह · चेष्टा व्यर्थ है। हमने अपने मन में जो निश्चय कर लिया है उससे मनुष्य तो क्या साक्षात् इन्द्र भी हमें नहीं डिगा सकते। शल्य को तो कर्ण का तेज हरण करना था। वे पहले से भी अधिक तीव्र बातें कहने लगे :- हे सूत-पुत्र ! खरगोशों के बीच में बैठे हुए गीदड़ ने शेर को जब तक जंगल में नहीं देखा तब तक वह अपने ही को शेर समझता है । जब तक घोर युद्ध में गाण्डीव की टङ्कार तुम्हारे कान में नहीं पड़ती तब तक जो कुछ तुम्हारे मुँह से निकले कह सकते हो। रे मूढ़ ! मूसे और बिलार में, कुत्ते और बाघ में, गीदड़ और शेर में, खरगोश और हाथी में जो अन्तर है तुम्हारे और अर्जुन के बीच भी वही अन्तर है। ये वाक्यरूपी बाण कर्ण के कलेजे में छिद गये। उनसे उन्हें बड़ी व्यथा हुई । क्रोध से जल भुन कर वे कहने लगे :-- रे बकवादी ! गुणग्राही के सिवा गुणवान् का गुण और कोई नहीं जान सकता । अतएव तुम किस तरह हमारे गुण-दोष जान सकोगे ? और, अर्जुन के बल की बात भी तुम हमारे सामने क्या कहोगे ? तुम्हारी अपेक्षा हमें उसका ज्ञान अधिक है और हम इस बात को सबके सामने कहने के लिए मी प्रसन्नतापूर्वक तैयार हैं। अपने दोनों के बल-वीर्य्य का अच्छी तरह विचार करके ही हमने गाण्डीव- धन्वा को युद्ध के लिए ललकारा है । रुधिर का प्यासा और विष का बुझा हुआ एक सोने का नागास्त्र हमारे पास है। उससे हम सुमेरु पर्वत को भी फाड़ सकते हैं। इस सर्पास्त्र को बहुत दिन से हम अपने पास यत्नपूर्वक रक्खे हुए हैं। हम सच कहते हैं, इस शर को आज हम कृष्ण और अर्जुन को छोड़ और किसी पर न छोड़ेंगे। हे अधम क्षत्रिय ! अर्जुन का कपिध्वज रथ और गाण्डीव धन्वा डरपोकों ही को डरा सकते हैं। हमें तो उन्हें देख कर उलटा हर्ष होगा। हे तुच्छ ! हे क्षत्रियों में कुलाङ्गार ! तुम हमारे पक्ष के होकर शत्रों की तरह हमें व्यर्थ डराते हो । हम डरनेवाले नहीं । अस्त्र-युद्ध में प्राण छोड़कर स्वर्ग प्राप्त करने ही को हम सबसे बड़ा लाभ समझते हैं। आज चाहे अर्जुन हमारा विनाश करें, चाहे