पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२८९

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सके। दूसरा खण्ड] अन्त का युद्ध २५७ किन्तु देखते देखते अर्जुन ने उनके सारथि, घोड़े और धनुष काट-कूट डाले। इससे वे लोग अर्जुन को एक क्षण भर भी राह में न रोक सके। क्रोध से भरे हुए कर्ण जहाँ पर पाण्डवों की सेना का तहस नहस कर रहे थे वहाँ पहुँच कर अर्जुन ने हँसते हुए बाण-वर्षा प्रारम्भ कर दी। अर्जुन के बाणों ने कर्ण के बाणों को व्यर्थ कर दिया। उन्होंने इतने बाण बरसाये कि आकाश में जिधर देखो उधर अर्जुन के बाण ही बाण देख पड़ने लगे। अर्जन के बाणों ने धीरे धीरे ऐसा विकराल रूप धारण किया कि वे मुसल की तरह, परिघ की तरह, शतन्त्री की तरह, और अत्यन्त कठोर वज्र की तरह. गिरने लगे। कौरवों की सेना का भीषण नाश आरम्भ हो गया। उनके मैनिक मारे डर के आँग्वें बन्द करके इधर उधर भागने और व्याकुल होकर चिल्लाने लगे। इमी समय भगवान भास्कर अस्ताचल पर पहुँच गये । युद्ध के मैदान में इतनी धूल उड़ी कि उसने सायङ्काल के अँधेरे को और भी घना कर दिया; कुछ भी न सुझाई पड़ने लगा। कौरवों के महा- रथी डरे कि कहीं फिर भी रात का युद्ध न जारी रहे । इससे अपने अपने दल को लेकर उन्होंने रणभूमि से चल दिया। लाचार होकर सेनापति कर्ण को युद्ध बन्द करना पड़ा । पाण्डव लोग जोन की खुशी में शत्रओं की हँसी और कृष्णार्जुन की स्तुति करते करते अपने अपने डरों में गये । दृमरे दिन महाबली कर्ण दुर्योधन के पास जाकर बोले :- महाराज ! आज हम महावीर अर्जुन के साथ आखिरी युद्ध करेंगे। अनेक कामों में लग रहने से आज तक हम दोनों परस्पर एक दसरे के सामने रथ खडा करके द्वैरथ यद्ध: आज या तो हम उन्हें मारेंगे, या वे हमारा संहार करेंगे। अर्जुन से हम कई बातों में कम है । इस कमी को हमें इस समय स्वीकार कर लेना चाहिए। अर्जुन का धन्वा दिव्य है; उनके दोनों तरकस कभी खाली नहीं होते, सदा भरे ही रहते हैं; अग्नि का दिया हुआ उनका रथ कभी टूट नहीं सकता; उनके घोड़े हवा की तरह तेज़ जानेवाले हैं और उनके सारथि खद कृष्ण हैं। यदि हमें योग्य सारथि मिल जाय तो और बातों में अर्जुन से कम होने पर भी हम उनके साथ युद्ध करने में ज़रा भी भयभीत न हों। अतएव, रथ हाँकने में कृष्ण की बराबरी करनेवाले शूर-शिरोमणि मद्रगज को हमारा सारथि बनने के लिए राजी कीजिए और आज्ञा दीजिए कि हथियारों से भरे हुए छकड़े हमारे पीछे पीछे चलें । ऐसा होने से हम अर्जुन से अधिक हो जायेंगे, इसमें सन्देह नहीं । राजा दुर्योधन यह सुन कर बड़े प्रसन्न हुए। कर्ण का यथोचित सत्कार करके उन्होंने कहा :- हे कर्ण ! तुमने जो कुछ कहा हम वही करेंगे। - यह कह कर दुर्योधन, महारथी मद्रराज के पास गये। उनके साथ बहुत सी प्रीति-पूर्ण बातें करके बड़ी नम्रता से उन्होंने कहा :-- महाराज ! आप सत्यव्रत हैं-सत्य को छोड़ कभी असत्य का आमरा नहीं लेते। आपके सारे काम शत्रों के दहलानेवाले होते हैं । इमी से सारे वीरों में से कर्ण ने आपहा को एक काम के लिए चुना है। उसी के विषय में हम आपसे निवेदन करने आये हैं। हम सिर झुका कर अधीनतापूर्वक आपसे प्रार्थना करते हैं कि हमारे कहने से, शत्रओं के संहार के निमित्त, आप कर्ण का सारथ्य करें-उनका रथ हाँके । आपके इस काम से हमारी अवश्य जीत होगी । सारथि का काम करने में केवल आप ही कृष्ण की बराबरी कर सकते हैं। इससे यदि आप कर्ण के रथ के घोड़ों की रास अपने हाथ में लेंगे तो वे अनायास ही अर्जुन को परास्त कर सकेंगे। पाण्डव लोगों की संख्या बहुत थोड़ी होने फा० ३३