२५० सचित्र महाभारत [दूसरा खण्ड अपनी दीप्ति प्रकाशित करने लगे। तब कर्ण अश्वत्थामा और कृपाचार्य ने बाण-वर्षा करके पाण्डवों की सेना का नाश आरम्भ किया। अपनी सेना की बुरी गति होते देख युधिष्ठिर ने अर्जुन से कहा :---- __ भाई ! देखो, इस डरावनी रात में महा धनुर्द्धर कर्ण सूर्य के समान शोभित हो रहे हैं। हमारे योद्धा उनके प्रबल प्रताप को न मह कर हाहाकार कर रहे हैं। इससे इस समय समयोचित काम करना चाहिए। अर्जुन ने कृष्ण से कहा :-- हे वासुदेव ! माँप जैसे पैर का स्पर्श नहीं सह सकता वैसे ही युद्ध-स्थल में हम कर्ण का पराक्रम नहीं सह सकते । इससे बहुत जल्द हमारा रथ कर्ण के पास ले चलो। इन्द्र ने जो निष्फल न जानेवाली शक्ति कर्ण को दी थी उसका हाल कृष्ण को मालूम था। इस बात को ध्यान में रख कर कृष्ण ने उत्तर दिया :- हे अर्जुन ! कई कारण ऐसे हैं जिससे इस समय तुम्हारा कर्ण के सामने जाना उचित नहीं । तुम्हारा पुत्र निशाचर घटोत्कच कर्ण की अच्छी तरह खबर ले सकता है। अतएव उसे ही यह काम सिपुर्द कीजिए। कृष्ण की आज्ञा के अनुसार अर्जुन ने घटोत्कच को बुला कर कहा :-- बेटा ! युद्ध में अपना पराक्रम दिखाने का तुम्हारे लिए इस समय अच्छा मौका आया है। राक्षसी माया आदि जो कुछ बल-पौरुष तुम्हारे पास हो उससे काम लेकर कर्ण का मुकाबला करो। घटोत्कच ने कहा :-हे पिता ! आपकी आज्ञा से हम कर्ण के साथ आज ऐसा युद्ध करेंगे जिसका स्मरण लोगों को बहुत दिनों तक बना रहेगा। शत्रुओं के नाश में परम प्रवीण निशाचर घटोत्कच ने, इतना कह कर, कर्ण पर आक्रमण किया। दोनों में महा-घोर युद्ध होने लगा। कर्ण किसी तरह भी घटोत्कच से पार न पा सके । तब उन्होंने दिव्याखों से काम लेना प्रारम्भ किया। यह देख घटोत्कच ने राक्षसी माया रची। पल भ भयङ्कर शस्त्र धारण किये हए राक्षसों का एक बहत बड़ा दल न मालूम कहाँ से अचानक उमड़ आया। घटोत्कच को बीच में डाल कर उसने पत्थरों की वर्षा आरम्भ कर दी। उस समय दिन तो था नहीं, थी रात । और रात को राक्षस और भी प्रबल हो उठते हैं। अतएव इन राक्षसों ने कौरवों की सेना के नाकों दम कर दिया । सब वीर विकल हो उठे। ___ अकेले कर्ण नहीं घबराये । उन्होंने समझ लिया कि यह सारी राक्षसी माया है। अतएव उन्होंने उस माया को दिव्यास्त्र द्वारा दूर कर दिया। राक्षसों ने देखा कि यह मायावी युद्ध से काम न चलेगा। तब उन्होंने अस्त्रों की वर्षा द्वारा कर्ण के संहार की चेष्टा की । अनन्तर शर, शक्ति, शूल, गदा, चक्र आदि की मार खाकर कौरव-वीरों के होश उड़ गये। बहुत सेना मारी गई; जो बची वह भाग गई। घोड़े कट गये; हाथी घबरा कर तितर-बितर हो गये; पत्थरों की मार से रथ चूर हो गये। - कर्ण की भी बुरी दशा हुई । राक्षसों ने अस्त्र-शस्त्रों से उन्हें तोप दिया। तथापि वे मैदान में डटे ही रहे । उन्हें छोड़ कर कौरवों के पक्ष का एक भी वीर युद्ध-स्थल में न टिक सका। सब भाग निकले। कर्ण को स्थिर देख घटोत्कच को बड़ा क्रोध हुआ। उसने शतन्त्री की एक ऐसी वार की कि कर्ण के चारों घोडे एक ही साथ मर कर जमीन पर गिर गये। कर्णबिना रथ के हो गये। उस कर्ण ने देखा कि हम तो इधर रथहीन खड़े हैं, उधर हमारी सेना लड़ाई के मैदान में नहीं है। राक्षस घटोत्कच जीत के मद में मस्त हो रहा है, अब क्या करना चाहिए ? इस तरह से वे सोच ही रहे थे कि चारों ओर से कौरवों का दल बड़े ही कातर स्वर से इस प्रकार विनती करने लगा :- हे सूत-नन्दन ! जान पड़ता है, कौरवों की सेना का आज ही जड़ से नाश हो जायगा। । समय
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